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आखिरकार मिला न्याय

By, बैतूल वार्ता

पी. चिदंबरम का कॉलम दूसरी नजर: आखिरकार मिला न्याय
मैने इस स्तंभ में 28 अगस्त, 2022 को लिखा था: ‘बिलकिस बानो नाम की शोक संतप्त, दुर्व्यवहार की शिकार और सताई हुई मां से बेहतर किसी इंसान की पीड़ा को कोई नहीं बयां कर सकता। कुछ सरल लेकिन हृदय विदारक शब्दों में उन्होंने लाखों गरीब, भेदभाव और उत्पीड़ित नागरिकों की स्थिति को अभिव्यक्त किया : ‘मुझे बिना किसी डर के जीने का मेरा अधिकार लौटाएं।’
जघन्य अपराध

बिलकिस बानो की कहानी का भाग एक बताने और दोबारा बताने योग्य है। वर्ष 2002 में एक ट्रेन में अग्निकांड के बाद गुजरात में हिंसा भड़क उठी थी। उस समय 21 वर्षीय बिलकिस बानो शादीशुदा थीं। उनकी तीन साल की एक बेटी थी और वह फिर से गर्भवती थीं। हिंसा के दौरान पुरुषों की एक भीड़ ने उन पर हमला किया, उनके बच्चे सहित उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी और उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया।

उनके मामले में सुनवाई विशेष न्यायाधीश, ग्रेटर मुंबई ने की। अपने 21 जनवरी 2008 के फैसले में अदालत ने 11 लोगों को दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा दी। प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2022 को अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में लोगों से नारी शक्ति-महिला शक्ति पर गर्व करने के लिए कहा। विडंबना यह है कि उसी दिन कुछ घंटों बाद, गुजरात सरकार ने 11 दोषियों की आजीवन कारावास की बाकी बची सजा को माफ करते हुए उन्हें मुक्त कर दिया।

रिहा किए गए दोषियों ने कोई पश्चाताप नहीं दिखाया; न ही वे हाशिए पर गए। उनका स्वागत किया गया और उन्हें माला पहनाकर मिठाई खिलाई गई। स्वागत समारोह में कुछ लोगों ने श्रद्धा दिखाते हुए उनके पैर छुए। एक ने कहा, ‘वे अच्छे संस्कार (संस्कृति) वाले ब्राह्मण हैं।’

यातनापूर्ण मुकदमेबाजी

दूसरा भाग अदालतों के बारे में है। आठ जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने माफी के आदेशों को रद्द कर 11 रिहा दोषियों को सजा काटने के लिए जेल अधिकारियों से संपर्क करने का निर्देश दिया। यह स्तंभ दोषियों द्वारा हासिल की गई अनुचित राहत के बारे में नहीं है। यह कानून के शासन और कानून और मानवाधिकारों के परस्पर जुड़े बड़े सवालों के बारे में है।

अदालत ने टिप्पणी की (मैं इस स्तंभ से संबंधित कुछ हिस्सों को उद्धृत कर रहा हूं) : एक महिला सम्मान की हकदार है, चाहे वह कितनी भी ऊंची या नीची क्यों न हो..। जांच एजंसी ने अंतिम रपट दायर की, जिसमें कहा गया कि आरोपी का पता नहीं लगाया जा सका और उक्त रपट को न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार कर लिया गया..।

इस अदालत ने मामले को फिर से खोलने का निर्देश दिया और केंद्रीय जांच ब्यूरो को जांच सौंपी। विशेष न्यायाधीश, ग्रेटर मुंबई ने 11 अभियुक्तों को दोषी ठहराया। बंबई उच्च न्यायालय ने चार मई 2017 को 11 व्यक्तियों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। प्रतिवादी नंबर तीन … ने समय से पहले रिहाई के लिए उनके आवेदन पर विचार न करने को चुनौती दी … गुजरात उच्च न्यायालय ने 17 जुलाई 2019 के आदेश द्वारा याचिकाकर्ता को निर्देश दिया …कि महाराष्ट्र राज्य के साथ मामले की पैरवी करें।

सुप्रीम कोर्ट ने (13 मई, 2022 के एक फैसले में), किसी भी चुनौती के अभाव में, गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा पारित 17 जुलाई 2019 के आदेश को खारिज करते हुए … गुजरात सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता (राधेश्याम शाह) की समय पूर्व रिहाई के आवेदन पर उसकी दिनांक नौ जुलाई 1992 की नीति के अनुसार विचार करे।

गुजरात राज्य की जेल सलाहकार समिति की एक बैठक 26 मई 2022 को हुई और सभी सदस्यों ने छूट देने की सिफारिश की। गोधरा के सत्र न्यायाधीश ने दिनांक नौ जुलाई 1992 की नीति को लागू किया और समय पूर्व रिहाई के संबंध में एक ‘सकारात्मक’ राय दी। दिनांक 11 जुलाई 2022 के पत्र द्वारा गृह मंत्रालय ने सभी 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई के लिए अपनी मंजूरी दे दी।

सुप्रीम कोर्ट ने आठ जनवरी 2024 के फैसले में पाया कि 13 मई, 2022 के उसके पहले के फैसले से शुरू होने वाली माफी से संबंधित पूरी कार्यवाही में गड़बड़ी की गई थी। न्यायालय के द्वारा बताए गए कारण गंभीर थे: गुजरात उच्च न्यायालय के 17 जुलाई, 2019 के फैसले को चुनौती नहीं दी गई; फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई, 2022 के फैसले में उसे रद्द कर दिया।

13 मई, 2022 का फैसला तथ्यों को छिपाकर और धोखाधड़ी से हासिल किया गया था, और इस कारण यह अमान्य है। उस फैसले में संविधान पीठों के बाध्यकारी उदाहरणों की अनदेखी की गई थी।केवल एक कैदी (राधेश्याम शाह) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, फिर भी माफी के लिए सभी दोषियों के मामलों पर विचार किया गया। गुजरात राज्य के पास इस मामले में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था; केवल महाराष्ट्र का अधिकार क्षेत्र था। गुजरात ने नौ जुलाई 1992 की नीति रद्द कर 23 जनवरी 2014 को नई नीति बनाई। राधेश्याम शाह ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष जो मांग की थी, उसमें गुजरात राज्य ने मिलकर काम किया था।

खट्टे-मीठे सबक

तीसरा भाग भारत के नागरिकों से संबंधित है। बिलकिस बानो मामले का सबक है कि नागरिकों की गरिमा, स्वतंत्रता, गोपनीयता और मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, लेकिन कुछ निडर पुलिस अधिकारी और साहसी न्यायाधीशों की वजह से दोषियों को सजा दी जाती है। सरकार अपराधियों के साथ सांठगांठ कर सकती है और उन्हें अवांछित रूप से मदद करती है। वादी अदालतों के साथ धोखाधड़ी कर सकते हैं।

न्यायाधीश गंभीर गलती कर सकते हैं। सार्वजनिक आक्रोश अन्य न्यायाधीशों को त्रुटियों को ठीक करने के लिए बाध्य कर सकता है। आखिरकार न्याय होता है। कानून का राज हावी होता है। और बिलकिस बानो के शब्द ‘मैं फिर से सांस ले सकती हूं’ हमेशा के लिए गूंजते हैं। आसपास की निराशा और अंधेरे के बीच बाकी है आशा और प्रकाश।

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