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पंचवटी: जहां से रावण ने सीता का किया हरण वहां राम की काली मूर्ति क्यों है? दलित आंदोलन से भी स्पेशल कनेक्शन

By, बैतूल वार्ता

पंचवटी: जहां से रावण ने सीता का किया हरण वहां राम की काली मूर्ति क्यों है? दलित आंदोलन से भी स्पेशल कनेक्शन

अयोध्या के निर्माणाधीन राम मंदिर के बीच पिछले दिनों महाराष्ट्र का कालाराम मंदिर चर्चा में आया। 12 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नासिक के पंचवटी क्षेत्र में गोदावरी तट स्थित कालाराम मंदिर का दौरा किया।

पंचवटी का रामायण में महत्वपूर्ण स्थान है।

यही वजह है कि पंचवटी का कालाराम मंदिर भी हिंदू धर्मावलंबियों के लिए विशेष हो गया है। मंदिर का आधुनिक इतिहास के दलित आंदोलन से भी स्पेशल कनेक्शन है। दशकों से प्रमुख राजनेता इस मंदिर का दौरा करते आए हैं।

रामायण में वर्णित कई महत्वपूर्ण घटनाएं पंचवटी में घटित हुईं हैं। राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने 14 साल के वनवास के पहले कुछ साल मध्य भारत के घने जंगल में बिताए थे। पंचवटी भी उन जगहों में शामिल था।

पंचवटी नाम उस क्षेत्र के पांच बरगद के पेड़ों के एक समूह के कारण पड़ा है। रामायण महाकाव्य के अनुसार, राम, सीता और लक्ष्मण ने पंचवटी में एक कुटिया स्थापित की थी क्योंकि पांच बरगद के पेड़ों की उपस्थिति ने इस क्षेत्र को शुभ बना दिया था।

वह पंचवटी क्षेत्र ही था जहां से लंका के राक्षस राजा रावण ने छल से सीता को लक्ष्मण द्वारा बनाए गए सुरक्षित घेरे से बाहर निकाल अपहरण कर लिया था। इसके बाद घटनाओं की श्रृंखला शुरू हुई, जिसके कारण राम दक्षिण की ओर लंका की तरफ गए और रामायण का युद्ध हुआ।

कालाराम मंदिर का नाम भगवान की एक काली मूर्ति से लिया गया है, क्योंकि मंदिर में राम की काली मूर्ति है, इसलिए मंदिर को कालाराम मंदिर कहा जाता है। गर्भगृह में राम, सीता और लक्ष्मण की काली मूर्तियां हैं। मुख्य द्वार पर हनुमान की एक काली मूर्ति है।

श्री कालाराम मंदिर संस्थान की वेबसाइट के अनुसार, मंदिर में हर दिन हजारों भक्त आते हैं। मंदिर का निर्माण 1792 में सरदार रंगाराव ओधेकर के प्रयासों से किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि सरदार ओधेकर को गोदावरी में भगवान राम की एक काले रंग की मूर्ति का सपना आया था। इसके बाद उन्हें नदी से मूर्तियां भी मिलीं। मूर्तियों के मिलने के बाद मंदिर का निर्माण कराया गया। संस्थान के अनुसार जिस स्थान पर मूर्तियां मिलीं उसका नाम रामकुंड है।

मुख्य मंदिर में 14 सीढ़ियां हैं, जो राम के 14 वर्ष के वनवास को दर्शाती हैं। इसमें 84 स्तंभ हैं, जो 84 लाख प्रजातियों के चक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें मनुष्य के रूप में जन्म लेने के लिए पूरा करना होता है। संस्थान की वेबसाइट कहती है कि यहां एक बहुत पुराना पेड़ है, जिसके नीचे पत्थर पर भगवान दत्तात्रेय के पैरों के निशान बने हुए हैं।

1930 में डॉ. भीमराव अंबेडकर और पांडुरंग सदाशिव साने (मराठी शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता) ने हिंदू मंदिरों में दलितों के प्रवेश की मांग के लिए एक आंदोलन चलाया था। पांडुरंग सदाशिव साने को ‘साने गुरुजी’ के नाम से भी जाना जाता है।

2 मार्च 1930 को अंबेडकर ने कालाराम मंदिर के बाहर एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। दलित प्रदर्शनकारी ट्रकों में भरकर नासिक पहुंचे और मंदिर को घेरकर धरना दिया। अगले कुछ दिनों तक उन्होंने गाने गाए, नारे लगाए और मंदिर में प्रवेश के अधिकार की मांग की।

प्रदर्शनकारियों को उस वक्त विरोध का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने रामनवमी के जुलूस को मंदिर परिसर में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश। इस दौरान पथराव की घटना हुई। धनंजय कीर ने अपनी किताब ‘डॉ. अम्बेडकर: लाइफ एंड मिशन’ में बताया है कि कैसे डॉ. अंबेडकर ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित किया था।

कीर ने लिखा, कालाराम मंदिर में सत्याग्रह 1935 तक जारी रहा। इससे पहले, 1927 में अंबेडकर ने दलितों के सार्वजनिक स्थानों पर पानी का उपयोग करने के अधिकारों पर जोर देने के लिए एक और सत्याग्रह शुरू किया था।

डॉ. अंबेडकर के साथ साने गुरुजी ने भी दलित अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए पूरे महाराष्ट्र की यात्रा की थी। उन्होंने पंढरपुर के विठ्ठल मंदिर में एक विरोध उपवास का नेतृत्व भी किया था।

कालाराम मंदिर में दशकों के तमाम बड़े नेता पहुंचते रहे है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम जुड़ता है। बीते 6 जनवरी को उद्धव ठाकरे ने कहा था, ‘… [22 जनवरी] को हम नासिक के कालाराम मंदिर में भगवान राम के दर्शन करेंगे। यह वही मंदिर है जिसमें डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर और साने गुरुजी को दलितों को प्रवेश दिलाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था।’ ठाकरे ने कहा था कि भगवान राम सबके हैं।

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