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पंचायत चुनाव में OBC आरक्षण न मिले इस मंशा से कांग्रेस ने लगाई थी याचिका: हेमंत खंडेलवाल

Waman Pote

बैतूल-मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण करने के संबन्ध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मप्र सरकार पारित आदेश में संशोधन करने का आवेदन दायर कर पुनः अदालत से आग्रह करेगी कि मप्र में ओबीसी आरक्षण के साथ ही पंचायत एवं स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न हों |

पूरे प्रदेश में गुरुवार को भाजपा की ओर से जिला कार्यालयों में प्रेस वार्ता की गई है बैतूल भाजपा कार्यालय विजय भवन में पूर्व सांसद हेमंत खंडेलवाल ने प्रेस वार्ता के दौरान बताया कि कांग्रेस के कारण पिछड़ा वर्ग आरक्षण से वंचित रहा है, कांग्रेस नहीं चाहती कि स्थानीय चुनाव हों और  याचिकायें लगवाकर चुनाव रुकवाए थे  और बिना ओबीसी आरक्षण के नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव कराये जाने की वर्तमान परिस्थिति कांग्रेस के कारण निर्मित हुई है।

मध्यप्रदेश में तो 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के साथ पंचायत चुनाव प्रक्रिया चल ही रही थी एवं सरकार द्वारा इसके अंतर्गत वार्ड परिसीमन , वार्डों का आरक्षण , महापौर तथा अध्यक्ष का आरक्षण , मतदाता सूची तैयार करना आदि समस्त तैयारी कर ली गई थी। यहां तक की ओबीसी एवं अन्य उम्मीदवारों द्वारा नामांकन भी दाखिल कर दिया गया था , किन्तु कांग्रेस इसके विरूद्ध हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गई , जिससे होने वाले चुनाव प्रभावित हुए एवं व्यवधान उत्पन्न हुआ ।  कांग्रेस ने अपने याचिकाकर्ताओं मनमोहन नागर , जया ठाकुर व सैयद जाफर के माध्यम से कोर्ट में प्रकरण दाखिल किया गया । इस तरह न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझाकर ओबीसी हितों को कुचलने का काम कांग्रेस द्वारा किया गया है।

 मध्यप्रदेश सरकार ने आयोग बनाकर 600 पेज की जो रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की , उसमें प्रदेश में ओबीसी वर्ग की आर्थिक , सामाजिक , राजनैतिक परिस्थितियों के साथ एरियावाईज संख्या के आंकड़े विस्तृत रूप से प्रस्तुत किए थे । जिसमें बताया गया था कि 48 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी मतदाताओं की औसत संख्या मध्यप्रदेश में है । कुल मतदाताओं में से अजा / अजजा के मतदाताओं के अतिरिक्त शेष मतदाताओं में अन्य पिछडावर्ग के मतदाताओं की संख्या 79 प्रतिशत है . यह नही आयोग की रिपोर्ट में पेश किया गया था ।  आयोग ने स्पष्ट अभिमत दिया था . कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों तथा समस्त नगरीय निकाय चुनावों के सभी स्तरों में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को कम से कम 35 प्रतिशत स्थान आरक्षित होना चाहिए।  वह कमलनाथ सरकार ही थी , जिसने विधानसभा में 8 जुलाई 2019 को मध्यप्रदेश लोकसेवा आरक्षण संशोधन विधेयक में यह भ्रामक और असत्य आंकड़ा प्रस्तुत किया कि अन्य पिछड़े वर्ग की मध्यप्रदेश में कुल आबादी सिर्फ 27 प्रतिशत है । यह कांग्रेस का वह असली ओबीसी विरोधी चेहरा है । जो मध्यप्रदेश की विधानसभा के दस्तावेजों में सदैव के लिए सक्ष्य बन गया है ।

आदेश में संशोधन की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि वर्ष 2022 में नया परिसीमन त्रिस्तरीय पंचायतों का किया गया है तथा वर्ष 2019 से 2022 के मध्य 35 नये नगरीय निकाय गठित हुए हैं , इन नगरीय निकायों में ग्रामीण क्षेत्र से 128 ग्राम पंचायतें तथा उनके 297 ग्राम नगरीय निकायों में चले गये हैं जबकि उच्चतम न्यायालय के आदेश में वर्ष 2019 में त्रिस्तरीय पंचायतों के परिसीमन के आधार पर चुनाव कराये जाने के निर्देश दिये गये हैं । जिससे कई विसंगतियां उत्पन्न होगी । चुनाव नवीन परिसीमन के अनुसार ही कराया जाना आवश्यक है । भाजपा शीघ्र चुनाव कराना चाहती है तथा उसके लिए पहले भी कई बार प्रयास किये गये हैं । भाजपा यह भी चाहती है कि चुनाव पिछडे वर्ग के आरक्षण के साथ हो । शीघ्र चुनाव कराये जाने एवं अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के साथ कराये जाने का पुरजोर प्रयास भाजपा सरकार द्वारा किया जा रहा है ।

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