सूर्यदेव बदलेंगे अपनी चाल; आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे,धरती को रजस्वला माना जाता
By, बैतूल वार्ता
सूर्यदेव बदलेंगे अपनी चाल; आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे,धरती को रजस्वला माना जाता
सूरज जब आसमान से आंखें तरेर रहे होते हैं तपती धूप और जानलेवा गर्मी से लोग परेशान होते हैं आद्रा नक्षत्र महरम का काम करता है। देश भर में इसे उत्सव के रूप में मनाते है। खीर दही पूड़ी व अन्य मिष्ठान खाने और खिलाने की परंपरा रही है। इन पकवानों को भगवान को भोग भी लगाया जाता है।
आद्रा में खीर, दही पूड़ी व अन्य मिष्ठान खाने व खिलाने की है परंपरा
आद्रा के प्रथम तीन दिन धरती को रजस्वला माना जाता है
धरती की नहीं होती है निराई गुड़ाई, अब कृषि कार्य में आएगी तेजी
बैतूल। 2024 आगामी 22 जून शनिवार को सूर्य मृगशिरा नक्षत्र से आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। यह काल कृषि की अनुकूलता के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। बिहार में आद्रा नक्षत्र के साथ ही मानसून का आगमन माना जाता है। आद्रा नक्षत्र को जीवनदायनी कहा गया है। इसके आगमन से धरती और किसान दोनों को राहत मिल जाती है।
आद्रा की वर्षा कृषि के लिए सबसे उपयोगी मानी जाती है। इस नक्षत्र को बीजारोपण के लिए सर्वोत्तम काल माना जाता है। आद्रा के प्रथम तीन दिन घरती को रजस्वला माना जाता है। कहावत है कि इस दौरान सींक से भी धरती की खुदाई की मनाही होती है।
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि सूरज जब आसमान से आंखें तरेर रहे होते हैं, तपती धूप और जानलेवा गर्मी से लोग परेशान होते हैं, आद्रा नक्षत्र महरम का काम करता है। इसे उत्सव के रूप में मनाते है। खीर, दही पूड़ी व अन्य मिष्ठान खाने और खिलाने की परंपरा रही है। इन पकवानों को भगवान को भोग भी लगाया जाता है।
दिन में 8:00 बजे सूरज मृगशिरा नक्षत्र से आद्रा नक्षत्र में करेंगे प्रवेश
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष 22 जून शनिवार पूर्णिमा तिथि को सूरज मृगशिरा नक्षत्र से आद्रा नक्षत्र में दिन में 8:00 बजे प्रवेश करेंगे। आगामी छह जुलाई शनिवार को दिन में 9.34 बजे सूर्य आद्रा नक्षत्र से पुनर्वसु नक्षत्र में प्रवेश करेंगे।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, 27 नक्षत्रों में आद्रा नक्षत्र का स्थान छठा है। 28 जून को शुक्र का उदय पश्चिम दिशा में शाम 5 बजकर 6 मिनट पर होगा। इस दौरान स्त्री पुरुष व सूर्य चंद्र योग रहेगा। आद्रा नक्षत्र का वाहन चातक होगा तथा इसके अधिपति मंगल होंगे।
इस दौरान सामान्य वृष्टि योग बन रहा है। यह खरीफ फसल का सर्वोत्तम काल है। इस नक्षत्र में धान का बीजारोपण एवं अन्य फसल व सब्जियां रोपी जाती हैं। कहा जाता है कि आद्रा के बीज में कीड़े मकोड़े का प्रकोप कम होता है। बीज बलिष्ठ होते हैं।
आद्रा का अर्थ है नमी
संस्कृत में आद्रा का अर्थ नमी अथवा गीला होता है। इस नक्षत्र में मानसून अमृत वर्षा करता है, जिससे पृथ्वी पूरी तरह जल से तृप्त हो जाती है। ऐसा होने से लोगों में आत्मविश्वास बढ़ता है और कृषि कार्य में तेजी आती है, जिसे जीवनदायनी नक्षत्र भी कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 22 जून को सूर्य दिन में 8:00 बजे मृगशिरा नक्षत्र से आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। वर्षा का आरंभ इसी नक्षत्र से माना जाता है। इस नक्षत्र में भूमि की सृजन क्षमता बढ़ जाती है।
27 नक्षत्रों में 14 चन्द्रमा के हैं नक्षत्र
ज्योतिष गणना के अनुसार साल में कुल 27 नक्षत्र हैं, जिममें 14 नक्षत्र चंद्रमा से संबंधित हैं तथा शेष 13 नक्षत्र सूर्य से।
चन्द्रमा के नक्षत्र हैं- अश्वनी, भरनी, कृतिका, रोहिणी, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेशा, माधा, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, पूर्वा भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती
सूर्य के नक्षत्र हैं- मृगशिरा, हस्त, चित्रा, श्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, श्रवणा, धनिष्ठा और शतभिषा
वार: वार का आशय दिन से है। एक सप्ताह में सात वार होते हैं। ये सात वार ग्रहों के नाम से रखे गए हैं – सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार।
योग: नक्षत्र की भांति योग भी 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहा जाता है। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम – विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।
करण: एक तिथि में दो करण होते हैं। एक तिथि के पूर्वार्ध में और एक तिथि के उत्तरार्ध में। ऐसे कुल 11 करण होते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं – बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं और भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।