उस सिस्टम को तो आग ही लगा देना चाहिए जो हाथ के बल घिसटकर चलने वाली विकलांग को न्याय नही दे पा रहा ..
Wamn pote
बकलोल : हम लोग गन्दे है
उस सिस्टम को तो आग ही लगा देना चाहिए जो हाथ के बल घिसटकर चलने वाली विकलांग को न्याय नही दे पा रहा ..
बैतूल। उस सिस्टम को तो आग ही लगा देना चाहिए जो मजलूम असहाय की मदद नही कर सकता, उनके साथ न्याय नही कर सकता। क्या जरूरत है मोटी तनख्वाह और सरकारी खर्चे पर सुख सुविधा लेने वाले अफसरों की जब एक विकलांग महिला दफ़्तर दफ्तर घिसट रही हो। उसके आवेदन आवक जावक रजिस्टर का महज एक तम्बर बनकर रह जाने के लिए नही है। क्या कलेक्टर की जनसुनवाई में इतना दम नही कि उसके हक के 15 हजार रुपए वापस दिलवा दे या एसपी की पुलिस में इतना जोर नही कि उसके पैसे हड़प कर जाने वाले उसके पैसे उगलवा दे। यदि प्रशासन जैसी कोई चीज है तो फिर पिछले एक माह से भटक रही विकलांग की अब तक सुनवाई क्यो नही हुई। जबकि पिछले मंगलवार भी वह जनसुनवाई में गई थी और इस मंगलवार को भी अपने हाथ मे व्हप्पल पहन कर घिसटते हुए पहुंची थी। एसपी आफिस में भी 9 मई को उसने आवेदन दिया था पर सिस्टम है कि रेंग रहा क्योकि इस गरीब महिला के पास किसी सफेदपोश की सिफारिश नहीं है या उसके पास किसी दलाल मुखबिर टाइप चापलूस का जुगाड़ नही है। यदि होता तो उसे इस तरह भरी गर्मी में घिसटते हुए नही भटकना पड़ता। यहा बात हो रही डॉन बास्को के पास सदर में रहने वाली विधवा विकलांग मीरा कांगले की जिसे चकोरा मुलताई निवासी दिलीप धुर्वे ने भरोसे में लेकर 15 हजार रुपए ले लिए और अब पैसे लौटने से मना कर रहा। उसे धमका रहा है। वह थाने गई तो उसे टरका दिया औऱ अब हमारे सिस्टम के साहेब लोगो के पास भी गुहार लगा चुकी पर नतीजा सिफर ही रहा। आश्चर्यजनक तो यह कि यह महिला 100 फीसदी विकलांग है फिर भी इसे अभी तक ट्राइसाइकिल ही नही मिली। एक जरूरत मंद अल्पशिक्षित और खुद्दार महिला जो विधवा है विकलांग है फिर भी भीख मांगने की जगह सब्जी भाजी बेचकर अपना औऱ अपने बेटे का पेट पाल रही , उसकी तकलीफ है।। ऐसे लोगो से अन्याय और धोखे में भी मदद न हो तो फिर सिस्टम और उसके अफसरो का क्या अचार डालेंगे।
सिस्टम बैठे महानुभावों को भी कभी कभी तो ऐसे मामलों में ऑन द स्पॉट की नाजीर पेश करना चाहिए वरना देखने और दिखाने के लिए बहुत कुछ है जिस पर इतने सवाल खड़े हो सकते है कि सिस्टम पर से लोगो का भरोसा ही नही उठेगा बल्कि लोग खिलाफ खड़े हो जाएंगे। उन जनप्रतिनिधियों को भी ऐसे लोगो की खोजबीन कर मदद करना चाहिए जिनकी संवेदनशीलता सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही फ़ोटो में दिखाई जाने वाली संवेदन तक ही है।
बाकी सब खैरियत है उस महिला का आवेदन और मामला यदि सच है यह हमारे समाज के लिए ही शर्मनाक है।
साभार (बकलोल /लक्ष्मी साहू)