पानी के लिए नेताओं को कोस रहे ग्रामीण,पानी ढोने में बीत रहा सारा दिन
आधी अधूरी नलजल योजना हैंडओवर लेने पंचायतों पर बन रहा दबाव
बैतूल।। जिले में जलग्रहण मिशन के अंतर्गत नलजल योजना का किस तरह दोहन किया गया इसका उदाहरण भीमपुर, भैसदेही और आमला ब्लाक के ग्रामो में साफ नजर आ रहा है। बैतूल वार्ता परत दर परत अपनी ग्राउंड रिपोर्ट लगातार प्रकाशित कर रहा है। लेकिन पीएचई के अधीकारियों समेत उच्च अधीकारियों पर इसका कोई असर पड़ता दिखाई नही दे रहा। खुद जनप्रतिनिधियों के गृहग्राम में हालात इतने ज्यादा खराब हैं। कि ग्रामीणों के घरों तक पानी नहीं पहुंच पाने के चलते गांव की अच्छी खासी जनसंख्या निजी जल स्त्रोतों पर निर्भर है। कई किलोमीटर दूर से पानी लाने की जद्दोजहद अब रोजाना का शगल बन चुकी है। पूरा दिन केवल पानी की जरूरतें पूरा करने में ही बीत रहा है।
बोर में डाल दी खराब मोटर , शिकायत के बावजूद सुनवाई नहीं
इसके पूर्व आमला ब्लाक में भाजपा विधायक डॉ योगेश पण्डागरे के ग्रह ग्राम ससुन्दरा में नलजल योजना के हालातों को एक्पोज किया जा चुका है। इसी ब्लाक की ग्राम पंचायत तोरणवाड़ा में बनाई गयी पानी की टंकी शोपीस बनकर खड़ी हुई है। योजना के तहत बोर तो किया गया लेकीन बोर में खराब मोटर डाले जाने और काम अधूरा होने से पानी की सप्लाई पर कई महीनों से ब्रेक लगा हुआ है। गांव के उप सरपंच यशवंत हुडे ने बताया कि योजना अधूरी पड़ी हुई है।पीएचई के अधिकारी और ठेकेदार हैंड वोहर लेने के लिए दबाव बनाते है पर हम नही ले रहे हैं। गांव वालों का कहना है कि एक बार टेस्टिंग की गई थी लेकिन नलों में प्रेशर से पानी नहीं आ रहा था।ठेकेदार ने स्टेंड पोस्ट लगाए न नलों में टोटिया लगाई है।बोर में भी खराब मोटर डाल दी है।
गांव की कुल आबादी 1800 सौ है जिसके हिसाब से टंकी तो बनी पर पानी की समस्या जस की तस है,ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले बर्राढाना,टप्पाढाना, डोगरदेव मे भी हालात खराब है ग्रामीण पीएचई विभाग के अधिकारियों से कई बार निवेदन कर चुके है पर हालात नही सुधारे जा सके हैं।
भारी भरकम राशि खर्च, इसके बाद भी गांव प्यासा
ब्लाक की दूसरी पंचायत रतेड़ा कला में नलजल योजना के घटिया काम के नमूने सिर्फ नजर आ रहे हैं। जिस उद्देश्य को लेकर ग्रामीणों को जो सपने दिखाए गए थे वे आज भी मात्र सपना ही बने हुए हैं। गांव में खुले चेम्बर, टूटी फूटी पाईप लाइन, और घरों के सामने लटके हुए पाईप योजना की दुर्दशा की कहानी बयां कर रहे हैं।
योजना पर भारी भरकम राशि खर्च हुई पर इसी पंचायत से जुड़ा राशी ढाना भी प्यासा ही रह गया। 100 घरों का यह आदिवासी गांव अब नेताओ को कोष रहा है।और पीने के पानी के लिए निजी जल स्त्रोतों को तलाश रहा है। कुछ यही हालात बोरी ग्राम पंचायत के शिवपूरीढाना और घिसी के भी हैं जहां आज भी ग्रामीण आदिम युग जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर हैं।