रतन टाटा के वो पाँच फ़ैसले, जिनका असर भारतीयों पर सीधा पड़ा
11 अक्टूबर 2024
टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन और मशहूर उद्योगपति रतन टाटा ने बुधवार की रात 86 साल की उम्र में आख़िरी सांस ली. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हुआ.
रतन टाटा पार्थिव शरीर नरीमन पॉइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में रखा गया है.
यहां शाम तक लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकेंगे, जिसके बाद राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा ने 21 साल तक टाटा समूह का नेतृत्व किया. जेआरडी टाटा ने उन्हें साल 1991 में टाटा इंडस्ट्रीज़ का प्रमुख बना दिया था.
उस वक़्त उदारीकरण का दौर शुरू हो रहा था और रतन टाटा ने दुनिया भर में पांव पसारने शुरू किए.
उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने न सिर्फ़ भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई.
अपने करियर के दौरान रतन टाटा ने कई ऐसे फ़ैसले लिए, जिन्होंने भारतीय उद्योग जगत को न सिर्फ़ मज़बूत किया बल्कि एक गहरी छाप भी छोड़ी.
1- सूचना क्रांति
जब सूचना माध्यमों के प्रसार का युग आया तो जहांगीर रतन जी दादा भाई टाटा (जेआरडी टाटा) ने 1968 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विस की स्थापना की. इसका मक़सद था कि कंपनी का पेपरवर्क कंप्यूटर के ज़रिए हो.
टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) की कहानी एक छोटे से बिज़नेस से शुरू हुई थी लेकिन आज की तारीख़ में यह 15 लाख करोड़ रुपये की कंपनी में बदल चुकी है.
टीसीएस एक भारतीय बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनी है जो 54 देशों में आईटी सेवाएं देती है.
रतन टाटा के नेतृत्व में टीसीएस ने साल 2002 में जीई मेडिकल सिस्टम के साथ 10 करोड़ डॉलर का अनुबंध साइन किया. इससे पहले किसी भारतीय आईटी कंपनी ने इतना बड़ा अनुबंध नहीं किया था.
कंपनी ने साल 2004 में आईपीओ से क़रीब 100 करोड़ डॉलर जुटाए थे.
इस वक़्त टीसीएस का मार्केट कैप 15 लाख करोड़ रुपए से भी ज़्यादा का है और वह भारत में रिलायंस इंडस्ट्रीज के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है.
2- भारत की पहली स्वदेशी कार
इमेज कैप्शन,1998 में टाटा मोटर्स ने भारत की पहली स्वदेशी कार को लॉन्च किया
1998 में टाटा मोटर्स ने भारत की पहली स्वदेशी कार को लॉन्च किया. इस कार का नाम टाटा इंडिका था. यह ना केवल भारतीय कार थी बल्कि इसका पूरा डिजाइन और इसे बनाने का काम भी भारत में ही हुआ था.
टाटा इंडिका को लॉन्च करना रतन टाटा के लिए एक बड़ा फैसला था क्योंकि वे पहली बार इस सेक्टर में क़दम रख रहे थे.
शुरुआत में इसे अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली और रतन टाटा ने इसे फ़ोर्ड मोटर कंपनी को बेचने का फ़ैसला किया.
लेकिन जब फ़ोर्ड मोटर्स ने टाटा पर यह ताना मारा कि अगर वो इंडिका को ख़रीदते हैं तो वो भारतीय कंपनी पर बड़ा उपकार करेंगे.
यह बात रतन टाटा को पसंद नहीं आई और उन्होंने अपने क़दम पीछे खींच लिए. एक दशक बाद हालात ऐसे बदले. 2008 में फ़ोर्ड कंपनी बड़े वित्तीय संकट में फंस गई.
इस समय रतन टाटा सामने आए और टाटा मोटर्स ने ब्रिटिश लग्जरी कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को फोर्ड से 2.3 अरब डॉलर में ख़रीद लिया.
3- टेटली और कोरस का अधिग्रहण
2000 में रतन टाटा ने टाटा से दोगुने बड़े ब्रिटिश समूह टेटली का अधिग्रहण कर सबको चौंका दिया था.
इसके बाद साल 2007 में रतन टाटा ने एक और बड़ा फैसला लिया. उन्होंने यूरोप की स्टील कंपनी कोरस का अधिग्रहण कर लिया.
क़रीब 13 अरब डॉलर की इस डील ने टाटा स्टील को दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी बना दिया.
आलोचकों ने इस सौदे की समझदारी पर सवाल उठाए लेकिन टाटा समूह ने इस कंपनी को लेकर एक तरह से अपनी क्षमता का प्रमाण दिया.
यह पहली बार था, जब किसी भारतीय कंपनी ने इतना बड़ी विदेशी कंपनी का अधिग्रहण किया था. इस फ़ैसले से रतन टाटा ने बताया कि टाटा कंपनी अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भी बड़ी डील कर सकती है.
4- नैनो: आम आदमी की कार
इमेज कैप्शन,साल 2009 में रतन टाटा ने नैनो कार लॉन्च की
रतन टाटा का सबसे चर्चित और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट टाटा नैनो था.
साल 2009 में उन्होंने यह कार लॉन्च की, जिसे दुनिया की सबसे सस्ती कार के तौर पर प्रचारित किया गया.
रतन टाटा का सपना था कि हर भारतीय परिवार जो मोटरसाइकिल पर सफ़र करता है, वह एक सुरक्षित और किफायती कार ख़रीद सके.
हालांकि इस कार को वो सफलता नहीं मिल पाई, जिसकी उम्मीद लगाई गई थी, लेकिन इसने भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में एक नई लक़ीर खींचने का काम किया.
नैनो को बनाने में भी रतन टाटा को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. दरअसल 2006 में पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा नैनो का प्लांट तैयार हुआ.
इस प्लांट के लिए स्थानीय किसानों से ज़मीन ली गई लेकिन जल्द ही किसानों के प्रदर्शन एक बड़े आंदोलन में बदल गए और आख़िरकर 2008 में टाटा ने सिंगूर प्लांट बंद कर दिया.
उन्हें तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने नैनो की फैक्ट्री गुजरात के साणंद में लगाने का ऑफर दिया.
5- टाटा एयरलाइंस से एयर इंडिया का सफर
टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन जेआरडी टाटा देश के पहले व्यक्ति थे, जिनके पास पायलट होने का लाइसेंस था. 24 साल की उम्र में ही उन्होंने इसे हासिल कर लिया था.
उन्होंने 1932 में टाटा एयरलाइन की शुरुआत की. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब विमान सेवाओं को बहाल किया गया तब 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई.
आज़ादी के बाद यानी साल 1947 में भारत सरकार ने टाटा एयरलाइंस का ही राष्ट्रीयकरण कर देश की आधिकारिक एयरलाइंस एयर इंडिया बना दिया.
लेकिन जनवरी, 2022 में एयर इंडिया की टाटा ग्रुप में सात दशक के बाद वापसी हुई. टाटा ने क़र्ज़ में डूबी एयर इंडिया की 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी 18 हजार करोड़ रुपये में ख़रीद ली थी.
उस वक़्त रतन टाटा ने एयर इंडिया की ‘घर वापसी’ का स्वागत करते हुए कहा था, “टाटा समूह का एयर इंडिया की बोली जीतना एक बड़ी खबर है. एयर इंडिया को फिर से खड़ा करने के लिए हमें काफ़ी कोशिश करनी होगी.”
उनका कहना था, “भावनात्मक रूप से कहें तो जेआरडी टाटा के नेतृत्व में एयर इंडिया ने एक समय में दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइंस में से एक का रुतबा हासिल किया था. शुरुआती सालों में एयर इंडिया की जो साख और सम्मान थे, टाटा समूह को उसे फिर से हासिल करने का एक मौक़ा मिला है.”
(साभार = बीबीसी हिन्दी )