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हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीजेपी के किस दांव से पिछड़ गई कांग्रेस ?

By,वामन पोटे

हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीजेपी के किस दांव से पिछड़ गई कांग्रेस ?

लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चुनाव पर देश भर की नज़र थी.

जम्मू-कश्मीर में जहां 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे थे, वहीं हरियाणा का चुनाव कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए बेहद अहम बताया जा रहा था.

हरियाणा के एग्जिट पोल में ऐसे आंकड़े आए जिसमें कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने की तरफ बढ़ती दिखी.

जब आठ अक्टूबर को नतीजे आने शुरू हुए तो रुझान ऐसे ही थे मगर दोपहर होते-होते पासा पलट गया और बीजेपी ने पिछली बार से भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया.

लगातार तीसरी बार हरियाणा में एक ही पार्टी की सरकार होना ऐतिहासिक है. ऐसे में चुनाव से पहले लगभग सारे विश्लेषक कांग्रेस के पक्ष में हवा बता रहे थे तो आख़िर ये कैसे हुआ ?

क्या बीजेपी की रणनीति को विश्लेषकों ने कम कर आँका? क्या कांग्रेस को फिर आपसी लड़ाई का मोल चुकाना पड़ा? क्या निर्दलीय उम्मीदवारों और छोटे दलों ने कांग्रेस को नुक़सान पहुंचाया या फिर ज़मीनी स्तर पर कांग्रेस और बीजेपी के काडर की प्रतिबद्धता का अंतर है ये नतीजा?

बीबीसी हिन्दी के ख़ास साप्ताहिक कार्यक्रम ”द लेंस” में कलेक्टिव न्यूज़रुम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने हरियाणा चुनाव के नतीजों से जुड़े इन्हीं सवालों पर चर्चा की.

इस चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी, हरियाणा चुनाव कवर करने वाले बीबीसी पत्रकार अभिनव गोयल, सी-वोटर के प्रमुख यशवन्त देशमुख और हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त अत्री और धर्मेंद्र कंवारी शामिल हुए.

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां की 90 विधानसभा सीटों में से 37 सीटों पर जीत मिली और वोट शेयर 39.09 फ़ीसदी रहा.

वहीं बीजेपी को बहुमत से ज़्यादा 48 सीटें हासिल हुईं और क़रीब 40 प्रतिशत वोट शेयर मिला है.

आख़िर हरियाणा चुनाव के सारे विश्लेषण और कयास ग़लत कैसे हो गए?

इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, “हरियाणा जाने वाले कहते थे कि लोग कह रहे थे कि वो बदलाव चाहते हैं. आप आकंड़े भी देखेंगे तो पिछले चुनाव से कांग्रेस को 11 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले हैं. ऐसा नहीं था कि नंबर नहीं थे.”

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान जाट और गैर जाट का मुद्दा हावी रहा. पार्टियों की सोशल इंजीनियरिंग भी इसके आसपास दिखी. ऐसा कहा जा रहा था कि कांग्रेस जाट वोट हासिल कर पाएगी.

वो कहती हैं, ” किसान आंदोलन, पहलवानों का प्रदर्शन, अग्निवीर का मुद्दा और राज्य में 2014 औऱ 2019 में जाट तबके से मुख्यमंत्री नहीं बनने को लेकर जाट समाज में नाराजगी थी. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में जाट समाज बंटा था. जेजेपी को 15 प्रतिशत वोट मिले थे और उसके खाते में 10 सीटें गई थीं. जेजेपी ने बीजेपी का समर्थन किया था.”

इस बार जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला खुद उचान कलां से बड़े अंतर से चुनाव हार गए

लोकसभा चुनाव से पहले ही सीट शेयरिंग के मुद्दे पर बीजेपी और जेजेपी के रास्ते अलग हो गए थे. पिछले विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले राज्य में क्षेत्रीय पार्टियों और निर्दलीय प्रत्याशियों की सीटों और वोट शेयर इस विधानसभा चुनाव में कम हुए.

बीजेपी के ‘साइलेंट वोटर’

बीबीसी के पत्रकार अभिनव गोयल अखाड़ा पॉलिटिक्स, पहलवानों और अग्निवीर के मुद्दे को लेकर हरियाणा के जींद, जुलाना, महेंद्रगढ़ समेत कई इलाकों में गए.

वो कहते हैं कि जाट समाज में कांग्रेस को लेकर जुड़ाव था. और वो कैमरे पर आकर ये बात कह भी रहे थे लेकिन ओबीसी समाज के लोग कैमरे पर आने से बच रहे थे, वो बहुत वोकल नहीं थे. ये एक बड़ी वजह रही, जो सुनाई नहीं दी.

आख़िर जनता का मूड समझने में गलती कहां हुई?

इस सवाल के जवाब में सी-वोटर के प्रमुख यशवन्त देशमुख ने कहा, “हमने हरियाणा चुनाव को लेकर तीन बड़ी भविष्यवाणी की थी. पहला था कि दस साल की एंटी इनकंबेंसी के बाद भी बीजेपी के वोट घट नहीं रहे हैं. एक से डेढ़ प्रतिशत वोट बढ़ ही रहे हैं. ये आपको फाइनल आंकड़े में दिखा. दूसरा था कि कांग्रेस के खाते में 12 से 13 फीसदी ज़्यादा वोट जाएंगे. ये जेजेपी और अन्य के वोट घटने से होगा.”

“विपक्षी वोट का सबसे बड़ा हिस्सा कांग्रेस को मिल रहा है. पिछली बार चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को 60 फीसदी वोट मिले थे. यानी 40 प्रतिशत अन्य को मिले थे. ये तीनों ही बात सही साबित हुई, लेकिन सीट वाली भविष्यवाणी गलत हो गई”

कांग्रेस के खाते में 12 से 13 फ़ीसदी वोट ज़्यादा मिलने की भविष्यवाणी की गई थी लेकिन गलती ये हुई कि इस भविष्यवाणी में कांग्रेस के लिए हमने जो बात कही थी वो सिर्फ साढ़े 11 फ़ीसदी तक रह, यानी जितना हम कह रहे थे कि उससे एक या डेढ़ फ़ीसदी वोट कम मिले.

कांग्रेस से क्या इस चुनाव में संगठनात्मक स्तर पर गलतियां हुईं?

इस पर हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार हेमन्त अत्री कहते हैं, “मिस मैनेजमेंट बनाम माइक्रो मैनेजमेंट का उदाहरण है. किस तरह से कांग्रेस मिस मैनेजमेंट (कुप्रबंधन) से जीते हुए चुनाव को हार की तरफ लेकर आई. बीजेपी जो लड़ाई में भी नहीं थी वो सत्ता में बढ़े हुए वोट से आई. कांग्रेस के वोट में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, लेकिन सीट में नीचे रह गई.”

हरियाणा विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज़ कांग्रेस के कई बागी नेताओं ने चुनाव लड़ा. चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी हर सीट को जीतने की कोशिश करती नहीं दिखी. उन्होंने अपने बागियों को बिठाया नहीं.

हेमन्त अत्री कहते हैं, “0.85 प्रतिशत के अंतर से 11 सीटें कांग्रेस ने खो दी. ये डेटा मैनेजमेंट और सीट टू सीट मैनेजमेंट का खेल था. कांग्रेस जो कि अति आत्मविश्वासी थी. अति आत्मविश्वासी मतलब आपके 17 बागी खड़े हुए, लेकिन आपने कितनों को बिठाने की कोशिश की? ये 17 सीटें आप देखेंगे तो जितनी वोटों से कांग्रेस हारी और उससे ज्यादा बागियों को वोट मिले. कांग्रेस ने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया.”

आखिरी समय में बीजेपी का तेज़ अभियान

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री का ये भी कहना है कि चुनाव के आखिरी चार दिनों में आरएसएस और बीजेपी ने कांग्रेस के मुखर वोटरों के ख़िलाफ़ एक तेज़ अभियान चलाया.

वो कहते हैं, “अहीरवाल और गुड़गांव की तरफ जाएंगे तो आप चौंक जाएंगे. विकास और गवर्नेंस के बारे में भूल जाइए. एक लाइन का एजेंडा था कि जाट को मुख्यमंत्री नहीं बनाएंगे. क्या आप कल्पना कर सकते हैं. हरियाणा जैसे प्रगितिशील राज्य में. दक्षिण हरियाणा में मैसेज दिया कि कांग्रेस आई तो जाट आ जाएंगे. इसका परिणाम हुआ कि अहीरवाल की 11 सीटों में से बीजेपी 10 जीत गई.”

हेमंत अत्री कहते हैं कि बीजेपी के भीतर भी आपसी लड़ाई थी लेकिन आखिरी समय में बात इस पर शिफ़्ट हो गई कि कांग्रेस आई तो जाट मुख्यमंत्री बन जाएंगे. बीजेपी अपनी अंदर की लड़ाई संभालने में कामयाब रही.

जाट बनाम गैरजाट समीकरण

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, “मुझे लगता है कि कहानी प्रचार के दौरान बदलती रही. बीजेपी गैर जाट पर निर्भर करती रही है, इस बार भी कर रही थी. मनोहर लाल खट्टर को बदल दिया. नायब सिंह सैनी को ले आए जो कि ओबीसी चेहरा हैं. दलित लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ झुका था. गैर जाट की तरफ से नाराज़गी होना साइलेंट था. वहीं दूसरी तरफ जाट मुखर था. इसने खेल कर दिया. कुमारी सैलजा को लेकर बोला जाने लगा कि उन्हें वो सीटें नहीं मिली और उन्हें नकारा गया. बीजेपी इसको भुनाती रही.”

कांग्रेस ने पूरा चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के हिसाब से लड़ा और सबसे ज़्यादा उम्मीदवार हुड्डा कैंप के उतारे गए, लेकिन इसके बावजूद जाट बहुल सीटों पर भी बीजेपी कई सीट जीत गई.

पत्रकार धर्मेंद्र कंवारी कहते हैं, “मैं हरियाणा के चुनाव को एक लाइन में कहूं तो यहां बीजेपी नहीं जीती, कांग्रेस हारी है. कांग्रेस ने इस चुनाव में इतनी गलतियां की हैं कि गिनीज वर्ल्ड ऑफ रिकॉर्ड में इसे दर्ज किया जा सकता है. ये रिसर्च का विषय होना चाहिए कि कैसे जीती हुई बाजी को एक पार्टी हारती है.”

वो कहते हैं कि ये पूरी लड़ाई माहौल और मैनजमेंट की थी. माहौल कांग्रेस के पक्ष में था लेकिन मैनेजमेंट की पार्टी ने खूबसूरती से इस चुनाव को जीत लिया.

उनका मानना है कि अगर कांग्रेस कुमारी सैलजा की मागों को कांग्रेस ठीक से हैंडल कर पाती तो परिणाम कुछ और होते. वो कहते हैं, “भूपिन्दर सिंह हुड्डा खलनायक हैं तो उनकी सह खलनायक की भूमिका कुमारी सैलजा ने निभाई है. दोनों की गलतियों के कारण कांग्रेस हारी है.”

वो कहते हैं कि हरियाणा में जाट राजनीति के नाम पर जाट परिवार की राजनीति ही रही है. असल में कोई जाट राजनीति नहीं है. ज़्यादातर समय जाट वोट का अलग-अलग परिवारों ने फ़ायदा उठाया है. ये धारणा अब टूटेगी.

दलित वोटर भी जो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ़ वोट करते दिखे थे, इस बार कांग्रेस को लेकर उनके मन में संशय की स्थिति थी.

इस पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, “दलित वोटर ने बहुत अहम भूमिका निभाई है इस बार. इससे आभास होता है कि दलित वोटर अपने वोट को लेकर ज़्यादा जागरूक हुए हैं.”

“वो अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं. जाटशाही वापस आएगी, दलित वोटर इससे घबराया. दलित वोटर जो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ गया होगा, वो वापस से बीजेपी की तरफ आ गया.”

वरिष्ठ पत्रकार कहती हैं कि निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी कांग्रेस का खेल बिगाड़ा है.

उन्होंने कहा, “16 निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा जिनमें से 7 बागी थे, ऐसा संदेह जाताया जता है कि इन्हें भूपेंद्र हुड्डा का समर्थन प्राप्त था. वो क्या खेल हुआ और कैसे हुआ.”

विधानसभा चुनाव से पहले मनोहरलाल खट्टर को सीएम पद से हटाने के बाद ऐसा कहा जा रहा था कि ये बात आरएसएस के साथ ठीक नहीं गई है, बीजेपी को इससे संगठन की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है लेकिन परिणाम ने ये दिखाया कि आरएसएस इस चुनाव में मजबूती से बीजेपी के साथ खड़ी रही.

नीरजा चौधरी कहती हैं, “आरएसएस बहुत सक्रिय हुआ है इस बार. थोड़ा उन्होंने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से हाथ खींचा था. वो चीजें फिर से ठीकठाक हो गई हैं. बीजेपी और आरएसएस बहुत मजबूती से उतरे हैं. हरियाणा का एक छोटा राज्य होना, उसमें हजार से 1500 वोट का भी इधर उधर जाना बहुत मायने रखता है. बीजेपी जिस तरह से कार्यकर्ता आधारित पार्टी है, अंतिम क्षण तक वो लगे रहते हैं, कांग्रेस में ऐसा नहीं है. कांग्रेस जीती हुई बाजी हार जाती है.”

पहलवानों का मुद्दा

लोकसभा चुनाव से पहले से ही पहलवानों के मुद्दों को लेकर कांग्रेस मुखर थी.

जब दिल्ली में जंतर-मंतर पर पहलवानों का भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष और बीजेपी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन चल रहा था तो प्रियंका गांधी उनसे मिलने पहुंची थीं. चुनाव से पहले विनेश फोगाट कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गईं. राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान लगातार पहलवानों का मुद्दा उठाते रहे.

बीबीसी के पत्रकार अभिनव गोयल ने चुनाव के दौरान अखाड़े की राजनीति को कवर किया.

वो कहते हैं, “पहलवानों के मुद्दे को लेकर हम जुलाना गए थे. पहलवानों को लेकर माहौल दिखाई दिया. जींद के अंदर पांच सीटें हैं, जुलाना, सफीदों, जींद, उचाना कलां और नरवाना है. इसमें से चार सीटों पर बीजेपी की जीत हुई. जुलाना में विनेश फोगाट की जीत हुई.”

विनेश के समर्थकों का कहना था कि उन्हें बड़ी जीत मिलेगी लेकिन वो महज 6 हज़ार वोट से ही जीत पाईं.

अभिनव कहते हैं, “विनेश फोगाट की जीत को विश्लेषक 40 हजार प्लस का वोट का अंतर देने लगे. लेकिन वो पीछे होने लगी तो लड्डू बंटने बंद हो गया. जीत का अंतर अब 6 हजार हो गया.”

इसको लेकर विनेश फोगाट और उनके पति उदास थे. उनको और जुलाना के पास के लोगों को उम्मीद थी कि विनेश फोगाट कांग्रेस की सरकार आने पर खेल मंत्री बनेगी.

माहौल था कि कांग्रेस की सरकार आ रही है. वो अपनी जीत को बहुत कड़वे घूट के साथ पी रहे थे कि जीत तो गए लेकिन सरकार नहीं आई. पहलवानों के मुद्दों को लेकर कांग्रेस ने इतना बड़ा माहौल बनाया, लेकिन वो इतना बड़ा माहौल जमीन पर नहीं था.

आम आदमी पार्टी कितना बड़ा फ़ैक्टर

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का हिस्सा है, लेकिन दोनों दल हरियाणा में अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़े.

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनाव से पहले सीट शेयरिंग को लेकर बात हुई, लेकिन बात नहीं बनी. इस बार के हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 1.79 प्रतिशत वोट मिले हैं.

सी-वोटर के प्रमुख यशवन्त देशमुख ने कहा, “हरियाणा के मामले में देखेंगे तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ रही थी. इस बार कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को साथ में नहीं लिया. करीब 2 फीसदी वोट आप देखेंगे तो आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस होती तो वो पांच सीटें जीतते. आप पांच सीटें ही इधर-उधर कर दीजिए तो हरियाणा का खेल खुल जाता.”

पीएम मोदी चुनावों में बीजेपी के स्टार प्रचारक होते हैं लेकिन इस बार ये भी बात बोली जा रही थी कि नरेंद्र मोदी उतने इस चुनाव में दिखाई नहीं दिए. इसको लेकर कहा जाने लगा था कि बीजेपी को लग रहा है कि वो नहीं जीत पाएगी.

धर्मेंद्र कंवारी कहते हैं, “मनोहर लाल खट्टर को छुपाया जा रहा था. पीएम मोदी ने रस्मी रैलियां की. बीजेपी के साथी खुद नहीं मान रहे थे कि 20 से ज्यादा जाएंगे.”
साभार बीबीसी हिंदी

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