डहुआ में 100 साल से नहीं मनाई होली, अनहोनी के डर से बरेलीपार गांव में एक दिन पहले मनाते होली 400 सालों से ग्रामीण 2 दिन पूर्व मना रहे होली
By,वामन पोटे
डहुआ में 100 साल से नहीं मनाई होली:होली के दिन प्रधान की कुएं में डूबने से हो गई थी मौत, इसके बाद से बंद है परंपरा
अनहोनी के डर से बरेलीपार गांव एक दिन पहले मनाते होली
400 सालों से ग्रामीण 2 दिन पूर्व मना रहे होली
बैतूल ।।आज जब पूरा देश रंगों से सराबोर है। हर कोई होली की मस्ती में मस्त है, लेकिन मप्र में एक गांव ऐसा भी हैं, जहां हर रंग बेरंग नजर आता है। यह गांव मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई का डहुआ ।
घोड़ाडोंगरी तहसील के बरेलीपार गांव में अनहोनी के दर से करीब 400 सालों से ग्रामीण होली पर्व दो दिन पूर्व मनाते आ रहे हैं।
शाहपुर तहसील के रायपुर गांव के ग्रामीण एक दिन बाद होली पर्व मनाते हैं
अनहोनी के डर से एक दिन पहले मनाते होली
यहां 100 साल से होली नहीं मनाई जा रही। यहां न तो रंग गुलाल उड़ता है, न ही पकवान बनाए जाते हैं। होली की बधाई तक नहीं दी जाती। होली पर लगे इस अघोषित प्रतिबंध के दायरे में बच्चे-बूढ़े सभी आते हैं।
बैतूल के इस गांव में होली पर रंगों को हाथ लगाना भी गुनाह समझा जाता है। होली पर गांव में आम दिनों की तरह चहल- पहल भी नहीं होती। दोपहर में तो गलियों पर सन्नाटा पसर जाता है। सिर्फ होली ही नहीं। होली के बाद पूरे पांच दिन यहां लोग ऐसे ही बेरंग रहते हैं।
2100 की आबादी इसलिए नहीं मनाती त्योहार
2100 की आबादी वाले इस गांव में होली नहीं मनाने की वजह भी बड़ी अजीब है। कहते हैं 100 साल पहले गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली खेलते हुए मौत हो गई थी।
उस दिन हर कोई होली की मस्ती में डूबा हुआ था। परंपरा के अनुसार होली खेलने गांव के बड़े, बुजुर्ग एक कुएं पर इकट्ठा हुए और मस्ती में डूब गए। रंग खेलने के बाद कुएं में कूदकर नहाने का सिलसिला भी चला। प्रधान भी कुएं में कूदे, लेकिन, फिर बाहर नहीं निकले। लोगों ने तलाशा तो प्रधान की लाश मिली। उस घटना के बाद आज तक गांव में किसी ने होली नहीं मनाई।
पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अशोक कड़वे के मुताबिक, उन्होंने 65 साल की उम्र में कभी गांव में होली नहीं खेली। बुजुर्ग बताते हैं कि यह सिलसिला 100 साल से भी अधिक साल से चल रहा है।
होली पर हर गली रहती है सूनी
गांव में 40 साल पहले ब्याह कर आई गीता कड़वे बताती हैं कि उन्होंने गांव में कभी होली मनाते नहीं देखा। चार साल पहले कुछ लोगों ने कोशिश की थी, लेकिन उस दिन फिर मगरदे परिवार में गमी हो गई। युवा अंकित बताते हैं कि उन जैसे युवाओं का मन तो होली मनाने को बहुत करता है, लेकिन गांव की परंपरा तोड़ने की जुर्रत कोई नहीं करता। वैसे वे लोग होली के पांचवें दिन पंचमी का त्योहार खूब धूम से मनाते हैं।
अनहोनी के डर से एक दिन पहले मनाते होली
घोड़ाडोंगरी।। अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए पहचाना जाता है यहां के ग्रामीण अलग-अलग परंपराओं को निभाते चले आ रहे हैं बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी तहसील के बरेलीपार गांव में अनहोनी के दर से करीब 400 सालों से ग्रामीण होली पर्व दो दिन पूर्व मनाते आ रहे हैं। बरेलीपार गांव में के ग्रामीणों ने दो दिन पूर्व बुधवार को ही होली पर मान लिया। वही मंगलवार को होलिका दहन किया। वही शाहपुर तहसील के रायपुर गांव के ग्रामीण एक दिन बाद होली पर्व मनाते हैं।
400 सालों से ग्रामीण 2 दिन पूर्व मना रहे होली
बरेलीपार के ग्रामीण शिवरतन सलाम ने बताया कि गांव में करीब 400 सालों से ग्रामीण दो दिन बाद होली पर्व मना रहे हैं। यह परंपरा कई पीढ़ी से हम निभा रहे हैं। गांव में कोई भी त्यौहार हो एक या दो दिन पूर्व मान लिया जाता है। त्योहार के दिन गांव में कोई भी त्यौहार नहीं मानता। गांव में खामोशी रहती है।
ग्रामीण कमल उइके ने बताया कि बरेलीपार गांव में
कोई भी त्यौहार अपनी निश्चित तिथि पर नहीं मनाया जाता। होली-दिवाली या कोई भी त्यौहार तय तिथि से एक या दो दिन पहले ही मना लिया जाता है। त्यौहार के दिन गाँव में सन्नाटा पसरा रहता है। इस बार होली 13 मार्च और धुरेड़ी 14 मार्च को है। लेकिन बरेली पर गांव में 11 मार्च को होली पर मना कर होलिका दहन किया गया वहीं 12 मार्च को धुरेड़ी मना ली गई। अनहोनी के डर के कारण ग्रामीण पहले ही त्यौहार मना लेते हैं।
अनहोनी के डर से पहले मानते है त्यौहार
ग्रामीण राजेंद्र वर्मा ने बताया कि कई पीढियां से गाँव में यही नियम चला आ रहा है. ऐसा बताया जाता है कि दशकों पहले यहां जब भी कोई त्यौहार मनाया जाता था, तो गाँव मे कोई अनहोनी हो जाती थी. इसके चलते कई वर्षों तक तो यहां कोई भी त्यौहार मनाया ही नहीं गया. लेकिन जब दोबारा शुरुआत हुई तो दहशत के चलते हर त्यौहार एक दिन पहले ही मनाया जाने लगा।
एक दिन बाद मनाई जाती है होली
रायपुर गांव के ग्रामीण चंद्र मर्सकोले ने बताया कि रायपुर गांव में होली पर्व एक दिन पहले मनाया जाता है। कई पीढियां से यह परंपरा चली आ रही है। पूर्वजों ने यह परंपरा बनाई थी। जिसका पालन आज भी ग्रामीण कर हो रहा है। सरपंच ज्योति टेकाम ने बताया कि गांव में एक दिन बाद होली पर्व मनाने का नियम पूर्वजों द्वारा बनाया गया। पूर्वजों द्वारा तय की गई तिथि पर ही त्योहार मनाते हैं। त्योहार सभी की खुशहाली के लिए होते हैं। इसीलिए इसे पारंपरिक तरीके से मनाना जरूरी है।