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नगर सरकार चुनाव पर शिवराज   ​​​​​​​सरकार का यू-टर्न:महापौर- नपा अध्यक्ष को सीधे जनता ही चुनेगी, अध्यादेश दोबारा राजभवन भेजा

Waman Pote

नगर सरकार चुनाव पर शिवराज   ​​​​​​​सरकार का यू-टर्न:महापौर- नपा अध्यक्ष को सीधे जनता ही चुनेगी, अध्यादेश दोबारा राजभवन भेजा

बैतूल।।मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव मामले में एक बार फिर ट्विस्ट आ गया है। शिवराज सरकार ने अपने ही निर्णय को पलटते हुए बड़ा फैसला लिया है। अब महापौर, नपाध्यक्ष और नगर परिषद अध्यक्षों को पार्षद नहीं, बल्कि जनता ही चुनेगी। यानी चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से ही करवाए जाएंगे। इसके लिए सरकार ने अध्यादेश दोबारा राजभवन भेज दिया है। जिसके बुधवार को ही मंजूर होने की संभावना है। इसके बाद नोटिफिकेशन जारी हो जाएगा।

ये फैसला मंगलवार देर रात भोपाल स्थित प्रदेश भाजपा कार्यालय में हुई बैठक में लिया गया। बैठक में सीएम शिवराज सिंह, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा मौजूद रहे। दोनों के बीच चर्चा के बाद अध्यादेश राज्यपाल की मंजूरी के लिए दोबारा राजभवन भेज दिया गया।

एक सप्ताह के भीतर यह दूसरी बार है, जब अध्यादेश राजभवन गया है। इससे पहले भी सरकार ने यही अध्यादेश (महापौर-अध्यक्ष को जनता द्वारा चुने जाने का) राज्यपाल को भेजा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे वापस बुला लिया था। इसके बाद तय किया गया कि चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे, यानी महापौर और अध्यक्ष को जनता नहीं, बल्कि पार्षद चुनेंगे। हालांकि सरकार ने अब फिर यू-टर्न ले लिया।

अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने आयोग को पत्र भेज चुकी थी सरकार
अध्यादेश की अवधि समाप्त होने से पहले मध्यप्रदेश नगर पालिक विधि (संशोधन) विधेयक 2021 को शिवराज सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र में पेश नहीं किया था, जबकि प्रस्तावित विधेयक को कैबिनेट से मंजूरी दे दी गई थी। पिछले साल आयोग को लिखे पत्र में सरकार ने इसका हवाला दिया था कि विधेयक को विधानसभा से मंजूरी नहीं मिलने के कारण अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराए जाएं।

BJP चाहती है जनता चुने महापौर-अध्यक्ष
भाजपा सूत्रों ने बताया कि संगठन की मंशा हमेशा महापौर व अध्यक्षों को सीधे जनता द्वारा चुने जाने की रही है। शहर की सरकार में कब्जा करने का यह सबसे आसान रास्ता दिखाई देता है। भले ही पार्षदों की संख्या किसी निकाय में कम हो, लेकिन महापौर अथवा अध्यक्ष भाजपा का होना चाहिए। पार्टी इस पर फोकस करती है। यही वजह है कि प्रदेश की लगभग सभी नगर निगमों में बीजेपी के महापौर रहे हैं।

विधायकों के दबाव में लिया था निर्णय
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि शिवराज ने नगरीय निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का निर्णय विधायकों के दबाव में लिया था। यही वजह है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने के अध्यादेश को डेढ़ साल तक विधानसभा में पारित नहीं कराया। दरअसल, सीधे महापौर चुने जाने से स्थानीय राजनीति में उनका कद विधायक से ज्यादा हो जाता है। वहीं, यदि पार्षद महापौर को चुनते हैं तो उसमें विधायकों की भूमिका अहम हो जाती है और महापौर उनके दबाव में रहते हैं।

तब भाजपा ने किया था विरोध
महापौर-निकाय अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने के कमलनाथ के फैसले को बीजेपी ने लोकतंत्र की हत्या बताते हुए विरोध किया था। भाजपा के सभी पुराने महापौर इस फैसले के खिलाफ तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन से मिले थे। तत्कालीन राज्यपाल ने संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए अध्यादेश और फिर विधेयक को अनुमति दे दी थी। यही वजह है कि अप्रत्यक्ष प्रणाली से नगर पालिका आलीराजपुर और नगर परिषद लखनादौन का चुनाव कराया जा चुका है।

बता दें कि कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली (पार्षदों को महापौर चुनने का अधिकार) से चुनाव कराने का निर्णय लिया था। लेकिब जब शिवराज चौथी बार सत्ता में आए, तो उन्होंने कमलनाथ सरकार के इस फैसले को अध्यादेश के जरिए पलट दिया, हालांकि इसे डेढ़ साल तक विधानसभा में पेश नहीं किया था। इससे कमलनाथ सरकार के समय बनाई गई, यह व्यवस्था आज भी प्रभावी है। इसी वजह से नया अध्यादेश राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया है।https://dainik-b.in/2cVRLiEshqb

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