पहली बार कलेक्टर के इलाके में आने से ग्रामीण खुश है ,कहते है उम्मीद पर कायम है ?
By वामन पोटे बैतूल वार्ता
अमृत मंथन भाग 1
पहली बार कलेक्टर के इलाके में आने से ग्रामीण खुश है ,कहते है उम्मीद पर कायम है ?
ग्राम संवाद के बाद के हालात ,स्कूलों में छात्र छात्राओं की उपस्थिति बेहद कम ?
बैतूल।।घोरपड गांव की 70 साल की रधिया (परिवर्तित नाम )कहती है दिन भर बच्चे गांव में घूमते है लड़ाई झगड़े करते है फिर सिक्के से गुच्चू खेलते है पर स्कूल की तरफ नही जाते ।बैतूल जिला मुख्यालय से 75 किलोमीटर दूर पहली बार भीमपूर ब्लाक के पिपरिया ग्राम पंचायत में कलेक्टर ने नब्ज टटोलने की पहल की यह पहल कितनी कारगर साबित होती है यह तो भविष्य के गर्भ में है।परन्तु प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं के हाल बुरे है ।यहाँ घोरपड के दोनों स्कूल में 200 छात्र छात्राएं दर्ज है परंतु 20,या 30 ही स्कूल में उपस्थित थे ।यह बात शुक्रवार को घोरपड के ग्रामीणों ने बताई ।इसी से मिलती जुलते हालत इलाके के 32 से ज्यादा स्कूलों में है।आखरी क्या कारण है यह तो कोई बता नही पा रहा है परंतु इन स्कूलों में पदस्थ शिक्षक शिक्षिकाएं कहती है कि घर घर जाने के बाद भी बच्चे स्कूल की तरफ नही आ रहे है ।इस बात को लेकर भीमपूर के बीईओ भी कहते है कि इस इलाके के स्कूलों में दर्ज संख्या के अनुपात में उपस्थिति बेहद कम है।एक शिक्षिका कहती है हम गांव में घर घर भी जाते है परंतु बच्चे स्कूल आने से भागते है पालक पंजी लेकर भी स्कूल क्षेत्र के सभी ढानो में जाते है बच्चों के माता पिता को समझाते है परंतु हालात जुलाई से लेकर आज तक जस के तस है ।शिक्षा का स्तर प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में बेहद खराब है शिक्षकों की कमी पहली कक्षा से लेकर पाचवी कक्षा तक सभी बच्चे ज्यादातर स्कूलों में एक साथ ही बैठे नजर आते है ।इन सभी स्कूलों में 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे जनजाति समुदाय के ही है। यह हालत कासमारखंडी,पडार,जड़िया संगवानी जिरुढाना सहित सभी गांव के है ।बीमार होने के बाद आशा कार्यकर्ता से दवाई लेने नही जाते जबकि ज्यादातर ग्रामीण भगत भुमका से ही इलाज करते है या फिर बंगाली डॉक्टर से सुई लगाते है ग्लूकोज की बॉटल चढ़ाते है पर सरकारी गोली दवाई पर भरोसा ही नही करते आखिर ऐसा क्यों है इसका जवाब कोई भी नही देता इलाके की ज्यादातर गर्भवती महिलाओं को प्रसव कराने का भरोसा गांव की दाई माँ पर ही है जिसके चलते ज्यादातर प्रसव घर पर ही हो रहे है अस्पताल जाने के लिए इनके पास कई बहाने है ।प्रसव के बाद नवजात की मृत्यु दर भी यहाँ कम नही है ।पड़ार गांव की बुजुर्ग महिला कहती है का करेगा अस्पताल जाकर घर मे ही तो बच्चा पैदा हो जाता है कब जाएगा अस्पताल गाड़ी टाइम पर मिलता नही है पेट मे दर्द हुआ और गाड़ी आने का पहले तो बच्चा रोने लग (पैदा हो) जाता है ।वह बड़ी सहजता से कहती है यहाँ बच्चा पैदा होता तो दारू लगती है किसी की मौत होती है तो दारू लगती है कोई नही पिता तो गुड़ खा लेता है ।
भले ही ग्राम सवाद में हर पंचायत में ग्राम सभा का आयोजन दोपहर तक किया परन्तु ग्राम सभा का कोरम कही भी पूरा नही हुआ आपसी मनमुटाव नेता नगरी के झगड़े चुनावी रंजिश के चलते सरकारी छोटे कर्मचारियों की शिकायतें फिर निलंबन होने से जहाँ शिकायत करने वाले खुश है तो वही एक बड़ा तबका नाराज भी है ज्यादातर इलाके के ग्रामीण कहते है कि ब्लाक मुख्यालय के अधिकारी पूरे ईमानदारी से काम करते तो बड़े साहब को छोटी छोटी शिकायतों पर निलंबन नही करना पड़ता है।जिन आंगनवाडी कार्यकर्ताओ की शिकायत हुई कि उन्होंने पैकेट नही दिए है जिन्हें नही मिले या जिन्होंने शिकायत की है वे पैकेट के सत्तू का क्या उपयोग करते है यह भी देखना होगा जिन्हें आंगनवाडी से पैकेट मिलते है वे ज्यादातर घरों में इसका उपयोग किसका कुपोषण दूर करने के लिए करते है ।