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फांसी पर लटकाए जाएं पिता-पुत्र. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने रामायण की चौपाई का जिक्र कर सुनाई ‘मौत की सजा’

By,वामन पोटे

फांसी पर लटकाए जाएं पिता-पुत्र. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने रामायण की चौपाई का जिक्र कर सुनाई ‘मौत की सजा’

बरेली। सतयुग में एक रघुवीर (भगवान श्रीराम) भी हुए, जिन्होंने अपने भाइयों की खातिर अपना राजतिलक भी नहीं कराया और वनवास को चले गए। छोटे भाई भरत ने महज उनकी खड़ाऊ रखकर पूरा राज पाठ संभाला।

जब वह लौटकर आए तो राजतिलक उन्हीं का कराया…।

अब कलयुग में एक रघुवीर (हत्यारा) है, जिसने संपत्ति के लालच में अपने ही छोटे भाई की निर्मम हत्या कर दी। उसका गला इतनी पशुवत तरीके से काटा कि वह महज खाल से ही जुड़ा बचा था। अपने बेटे से भी चाचा को गोली मरवाई। ऐसे भाई और भतीजे को इस समाज में जीने का कोई अधिकार नहीं…।

अपने आदेश में इन सभी बातों का जिक्र करते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम के न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने बहेड़ी के भोजपुर निवासी पिता-पुत्र रघुवीर और मोनू को फांसी की सजा सुना दी। कोर्ट ने कहा कि हत्यारों को फंदे पर तब तक लटकाया जाए जब तक दोनों की मौत न हो जाए।

यह है पूरा मामला

हल्दी खुर्द निवासी भूप सिंह के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने अपनी 20 बीघा जमीन अपनी बहन सोमवती के नाम कर दी। सोमवती का विवाह भोजपुर में अहवरन सिंह के साथ हुआ था।

अहवरन के दो बेटे रघुवीर व चरन सिंह तथा एक बेटी सरोज थी। अहवरन की मौत के बाद सोमवती गांव के ही शेर सिंह के साथ शादी कर ली। इसके बाद सोमवती को एक बेटा धर्मपाल सिंह भी हुआ। सोमवती व धर्मपाल के साथ चरन सिंह भी रहता था।

अविवाहित चरन सिंह की उम्र 42 साल थी। रघुवीर को डर था कि चरन सिंह अपने हिस्से की 16 बीघा जमीन सौतेले भाई धर्मपाल सिंह को दे देगा। इसलिए आए दिन रघुवीर चरन सिंह को धमकाता था। कई बार रघुवीर ने अपनी मां से भी उसे समझाने को कहा कि अगर उसने जमीन किसी दूसरे को दी तो वह उसे मार देगा।

2006 में रघुवीर ने चरन सिंह पर जानलेवा हमला भी किया था, जिससे उसके गंभीर चोटें भी आईं, लेकिन रिश्तेदारों के कहने सुनने पर मामला रफा दफा हो गया। 20 नवंबर 2014 को शाम 6:30 बजे की बात है। चरन सिंह रोज की तरह अपने मामा की समाधि पर दीपक जलाने गए थे। रास्ते में चरन सिंह की हत्या हो गई।

इसके बाद रघुवीर ने थाना बहेड़ी में मुकदमा दर्ज कराया कि उसके भाई को जब समाधि से लौटने में देर हो गई तो वह उन्हें तलाशने गए। देखा तो पता चला कि हरपाल व एक अन्य व्यक्ति ने उन्हें गोली मार दी और हवाई फायरिंग करते हुए भाग गए।

हत्या इतनी निर्मम थी कि मृतक की गर्दन धड़ से लगभग पूरी तरह अलग हो चुकी थी और सीने पर दो गोलियां लगी थीं। पोस्टमार्टम के दौरान दोनों बुलेट मृतक के शरीर में फंसी मिलीं।

जांच में खुल गया राज

मामले की विवेचना हुई तो पता चला कि हत्या किसी और ने नहीं बल्कि भाई की हत्या का मुकदमा लिखवाने वाले रघुवीर व उसके बेटे मोनू उर्फ तेजपाल ने ही की थी। मोनू उर्फ तेजपाल की निशानदेही पर आला कत्ल तमंचा भी बरामद हुआ।

चार्जशीट लगने के बाद मामला कोर्ट पहुंचा तो अभियोजन पक्ष ने 13 गवाह पेश किए और यह साबित कर दिया कि चरन सिंह की हत्या उसी के भाई रघुवीर और उसके भतीजे मोनू ने की थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट-प्रथम के न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने पिता पुत्र को हत्या का दोषी मानते हुए दोनों को फांसी की सजा सुनाई है। साथ ही मोनू पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

बायां कान भी काटा, गर्दन महज खाल से जुड़ी

कोर्ट ने अपनी रिपोर्ट में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का भी विस्तृत जिक्र किया है। बताया गया कि रिपोर्ट में चरन सिंह के शरीर पर कुल चार जगहों पर चोट के निशान थे। सभी घाव काफी गहरे थे। उनका बायां कान भी कटा हुआ था। गर्दन को इतनी बेरहमी से काटा गया कि केवल खाल से ही जुड़ा बचा था।

इसी के साथ कोर्ट ने रामचरित मानस के अयोध्या कांड के 51वें दोहे का भी जिक्र किया है। इसी के साथ यह भी बताया है कि भरत भले ही भगवान श्री राम को वन से वापस ले जाने में सफल नहीं हुए लेकिन उनकी खड़ाऊं पाने में सफल हो गए। इसलिए कहा जाता है कि ‘प्रभु करि कृपा पांवरी दीन्ही, सादर भरत सीस धर लीन्ही’।

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