पन्ना:लू लगने से भगवान जगन्नाथ बीमार, 15 दिन बंद रहेंगे मंदिर के कपाट
पन्ना. मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध पन्ना नगर में अनूठी धार्मिक परम्पराएं प्रचलित हैं, जिनका निर्वहन यहां धूमधाम के साथ किया जाता है। मालूम हो कि ठीक जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) की तर्ज पर यहां निकलने वाली रथयात्रा महोत्सव की परम्परा डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। परम्परानुसार पवित्र तीर्थों के सुगंधित जल से स्नान करने के कारण जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ स्वामी लू लगने से मंगलवार 14 जून को बीमार पड़ गये हैं। भगवान के ज्वर पीडि़त होने का यह धार्मिक आयोजन स्नान यात्रा के रूप में पन्ना के श्री जगन्नाथ स्वामी मन्दिर में सम्पन्न हुआ। इस आयोजन में महाराज राघवेन्द्र सिंह के अलावा मन्दिर समिति के लोग व पुजारी तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल रहे। भगवान के बीमार पडऩे के साथ ही रथयात्रा महोत्सव का शुभारंभ भी हो गया है।
डेढ़ शताब्दी पुरानी पंरपरा
पन्ना के लोग बताते हैं कि राजशाही जमाने से चली आ रही धार्मिक आयोजन की यह परम्परा डेढ़ शताब्दी से भी अधिक पुरानी है। परम्परा के अनुसार सुबह 9 बजे बड़ा दीवाला स्थित जगदीश स्वामी मंदिर में भगवान की स्नान यात्रा के कार्यक्रम की शुरूआत हुई। गर्भगृह में विराजमान भगवान जगदीश स्वामी उनके बड़े भाई बलभद्र, बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को आसन में बैठाकर मंदिर प्रांगण स्थित लघु मंदिर में बारी-बारी से लाकर विराजमान कराया गया। भगवान की स्नान यात्रा में पहुंचने पर बैण्डबाजों व आतिशबाजी से उनका स्वागत किया गया। भगवान की स्नान यात्रा के दौरान मंदिर प्रांगण में श्रद्धालु जयकारे लगा रहे थे।
हजार छिद्र वाले घड़े से स्नान
मंदिर के पुजारियों तथा ब्राम्हणों द्वारा वेद मंत्रों के साथ भगवान की पूजा अर्चना की गई तथा हजार छिद्र वाले मिट्टी के घड़े से भगवान को स्नान कराया गया। स्नान के साथ ही मान्यता के अनुसार भगवान लू लग जाने की वजह से बीमार पड़ गये। जिन्हें सफेद पोशाक पहनाई गई और भगवान की भव्य आरती की गई। भगवान के स्नान यात्रा के बाद चली आ रही परम्परा के अनुसार मिट्टी के घट श्रद्धालुओं को लुटाये जाने की परम्परा का निर्वहन हुआ। घट को श्रद्धालु खुशी के साथ सुरक्षित तरीके से अपने घर ले गये। वर्षभर खुशहाली की कामना के साथ अपने घर के पूजा स्थल में प्राप्त घट को रखकर उन्हें पूजा जायेगा।
पन्द्रह दिन सफेद वस्त्रों में रहेंगे
कार्यक्रम के बाद बीमार पड़े भगवान को फिर से बारी-बारी करके आसन में बैठाते हुये मंदिर के गर्भगृह के अंदर ले जाकर विराजमान कराया गया और मंदिर के पट 15 दिन तक के लिये बंद हो गये। भगवान के बीमार हो जाने के बाद अब श्रद्धालुओं को 15 दिन तक उनके दर्शन प्राप्त नहीं होंगे। मंदिर के पुजारी ही मंदिर के अंदर प्रवेश कर बीमार पड़े भगवान की पूजा अर्चना करेंगे। 15 दिन तक बीमार पड़े भगवान सफेद वस्त्रों में ही रहेंगे। अमावस्या के दिन भगवान को पथ प्रसाद लगेगा और इसके बाद अगले दिन भगवान की धूप कपूर झांकी के रूप में जाली लगे पर्दे से श्रद्धालुओं को दर्शन प्राप्त होंगे तथा दोज तिथि से भगवान की रथयात्रा शुरू हो जायेगी।