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कलेक्टर साहब —– कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) फंड ,  सरकारी स्कूलों की सेहत बिगड़ दी है ? By वामन पोटे बैतूलवार्ता रविवार 11सितंबर 2022

By बैतूलवार्ता

कलेक्टर साहब —–
कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) फंड ,  सरकारी स्कूलों की सेहत बिगड़ दी है ?

By वामन पोटे बैतूलवार्ता
रविवार 11सितंबर 2022

बैतूल।।भीमपूर ब्लाक के पिपरिया गांव में ग्राम संवाद के दौरान यह मामला देखने मे आया था कि संस्था के कर्ताधर्ता बड़ी ही बेबाकी से कलेक्टर अमनबीर बैस से सरकारी भवन संस्था के लिए मांग रहे थे संस्था के कर्ताधर्ताओ के साथ उपकृत सरकारी मिशनरी से जुड़े लोग भी संस्था को सरकारी भवन देना का निवेदन कर रहे थे परंतु सवेदनशील कलेक्टर ने साफ शब्दों में कहा कि संस्था को सरकारी भवन नही दिये जायेंगे । फिर भी संस्था ने काबरा गांव में सरकारी भवन पर कब्जा कर लिया है । भीमपूर ब्लाक के 61 गांवों में एनजीओ द्वारा संचालित कोचिंग क्लास के नाम पर बड़ी धांधली सामने आई है पहली से आठवीं कक्षा बच्चे को एक साथ बैठाया कर पढाई कराई जा रही है।ऐसे में सवाल उठ रहा कि एक साथ एक शिक्षक कैसे इन्हें शिक्षित कर सकता है ।यह तो मात्र सीएसआर फंड की बर्बादी की कहानी कह रहा है ।संस्था और प्रशासन के कर्ताधर्ताओ इस ओर ध्यान ही नही है कैसे वे मासूम शिक्षा ग्रहण कर रहे है।सुबह सात बजे से दस बजे तक और शाम साढ़े चार बजे से सात बजे तक लगने वाले इन कोचिंग क्लास में एक कमरे या फिर घर की दालान में कैसे संभव है 100 से ज्यादा बच्चों की एक साथ पढ़ाई काबरा गांव की 60 बरस की आदिवासी महिला बड़ी ही सहजता से कहती है अंधा पीस रहा है और कुत्ता खा रहा है वे कहती है कि ये तो पैसे की पूरी तरह बर्बादी है मासूम बच्चों को पढ़ाई के नाम पर छल कपट किया जा है संस्था में भले ही पढ़ाने वाले गांव के शिक्षक है पर बच्चों को तो पढ़ना तक नही आता बच्चे नास्ता और भोजन के लालच में ही संस्था के द्वार जा रहे है और फिर स्कूल की तरफ कम ही जाते है ।संस्था के कर्ताधर्ता इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मानते है कि बच्चे संस्था में सुबह शाम आ रहे है ।प्रशासन में जिन लोगो को इसकी मॉनिटरिंग करना है वे भी आँख मूंद कर इन्हें जीर्णशीर्ण सरकारी भवन उपलब्ध करा रहे है ।खानपान के लिए भी अच्छी सामग्री का उपयोग नही हो रहा है ये भी ज्यादातर जगहों पर खुली जगह पर पड़ी है जहाँ रोज बारिश के चलते शीत लग जा रही है ।पौष्टिक भोजन के नाम पर दाल रोटी सब्जी और नास्ते में पोहा जैसी चीजें परोसी जा रहे है ।इन बच्चों का हीमोग्लोबिन टेस्ट कर लिया जाय और वजन नाप लिया जाय तो ये भी कुपोषित की श्रेणी में ही आएंगे ।अब गांव के ज्यादातर लोग संस्था की लापरवाही को ही उजागर करने लगे है साल भर ज्यादा समय से संचालित होने वाला इन कोचिंग केंद्रों में जाने वाले मासूमो का शैक्षणिक स्तर देखकर लगता है कि ये यहाँ अपना समय ही बर्बाद कर रहे है।

 

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