मोहन यादव को मध्य प्रदेश सीएम बनाने का ऐलान
मध्य प्रदेश के सीएम पद पर उज्जैन दक्षिण क्षेत्र से विधायक मोहन यादव के नाम पर मुहर लगाकर बीजेपी ने तय कर दिया कि यह नयी बीजेपी है. यहां फैसले बिल्कुल अनएक्सपेक्टेड होते हैं. और केंद्रीय नेतृत्व किसी भी तरह के प्रेशर में काम नहीं करता.
अटल-आडवाणी युग की समाप्ति
पार्टी में किसी तरह का प्रेशर नहीं चलेगा
मोहन यादव को सीएम बनाकर बीजेपी ने पार्टी के सभी बड़े नेताओं को यह संदेश दे दिया है कि किसी भी शख्स का कोई प्रेशर काम नहीं करेगा. पार्टी जो चाहेगी वो करेगी. अगर कोई यह समझता है कि उनकी वजह से महिलाओं का वोट मिला , उनके नाम पर चुनावी जीत मिली है तो वह गलतफहमी में है. पार्टी अपने हित के लिए किसी को भी कुर्बान कर सकती है. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार महिलाओं से मिल रहे थे और प्रदेश के उन क्षेत्रों का दौरा कर रहे थे जहां बीजेपी कमजोर थी. यह एक तरह संदेश था कि शिवराज एक और टर्म मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं . तमाम मीडिया विश्लेषकों और पार्टी के लोगों को भी लग रहा था कि शिवराज ने बहुत मेहनत की है उन्हें पार्टी को सीएम के रूप में कंटीन्यू करना चाहिए. पर बीजेपी इस तरह की सहानुभूति से चलने वाली पार्टी नहीं है. एक बार यह फिर से साबित हो गया है.
मध्य प्रदेश में बीजेपी पर्यवेक्षकों ने विधायकों से गहन विचार-विमर्श के बाद मुख्यमंत्री का फैसला कर दिया है. शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे मोहन यादव राज्य में शिवराज सिंह चौहान की जगह लेंगे. मध्य प्रदेश की राजनीति में सीएम पद के लिए यादव छुपा रुस्तम साबित हुए हैं. हालांकि पिछली बार जब शिवराज सिंह चौहान को सीएम बनाने की तैयारी हो रही थी उस समय भी मोहन यादव के नाम पर विचार हुआ था. पर इस बार उनके नाम की चर्चा कहीं से भी नहीं हो रही थी. कहा जा रहा कि आरएसएस उनके नाम को लेकर काफी गंभीर था. पर पार्टी ने यूं ही नहीं उनके नाम को आगे बढ़ाया है . मोहन यादव को सीएम बनाकर भारतीय जनता पार्टी ने साफ संदेश दिया है.
यूपी-बिहार में यादव वोट साधेंगे
मोहन यादव को सीएम बनाकर बीजेपी ने यूपी-बिहार के यादवों को संदेश दे दिया है कि पार्टी उनके बारे में भी सोचती है. अगर बीजेपी के साथ यादव आएंगे तो उनको जरूर मौके मिलेंगे. दरअसल उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के चलते इन राज्यों में यादवों का वोट बीजेपी को नहीं मिलता रहा है. जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में यादवों की जनसंख्या सभी जातियों से अधिक है. उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों राज्यों में करीब 10 से 12 प्रतिशत की आबादी यादवों की है. ऐसे में इतने बड़े तबके का पार्टी से दूर रहना बीजेपी के लिए बहुत बुरा साबित हो रहा था. मोहन यादव को मध्य प्रदेश का सीएम बनाने से अगर यादव वोटों का कुछ परसेंट भी पार्टी अपनी ओर लाने में सफल होती है तो यह बीजेपी के बहुत बड़ा स्ट्रेंथ साबित होगा.हरियाणा में भी यादव वोटर्स अच्छी संख्या में हैं. मोहन यादव के नाम से हरियाणा में भी पार्टी मजबूत होगी. मध्य प्रदेश के राजनीतिक विश्वेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं कि यूं तो प्रदेश में यादव वोटर्स की संख्या केवल 3 परसेंट ही है पर ओबीसी वोटर्स पर होल्ड यादवों का ही रहा है. इसलिए एमपी में यादव नेतृत्व खास हो जाता है.कांग्रेस में भी जब तक यादव लीडरशिप मजबूत रही है पार्टी मजबूत रही है. कोऑपरेटिव सोसायटीज में यादव नेतृत्व सशक्त ढंग से प्रभावी रहा है.
ओबीसी वोट की राजनीति परवान पर रहेगी
बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी की सरकार ने जातिगत जनगणना का जो शिगूफा छोड़ा था उसकी हवा तो विधानसभा चुनावों में ही निकल गई थी. पर कांग्रेस जिस तरह से जाति जनगणना और पिछड़ी जाति के कल्याण की बातें करने लगी थी उससे यही लग रहा है कि कांग्रेस ओबीसी पॉलिटिक्स को लेकर अभी और आक्रामक रुख अख्तियार करने वाली है.पर बीजेपी ने जिस तरह छत्तीसगढ़ में आदिवासी को मुख्यमंत्री और ओबीसी को डिप्टी सीएम बनाकर गेम की शुरूआत की है वह मध्य प्रदेश में ओबीसी सीएम के साथ विपक्ष की बैकवर्ड पॉलिटिक्स की हवा निकालने के लिए काफी है.चुनावों के दौरान कांग्रेस नेता अपनी सभाओं में कहा करती थी उनकी पार्टी में देश के तीन सीएम ओबीसी हैं. जबकि बीजेपी में शिवराज को छोड़कर कोई भी सीएम ओबीसी कैटगरी से नहीं आता है.इसलिए बीजेपी के सामने किसी ओबीसी समुदाय से ही सीएम बनाने का बड़ा प्रेशर था.
बिहार-हरियाणा-झारखंड को रिपीट किया यानि कि कठपुतली सरकार
पार्टी में पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का युग स्वर्णकाल कहा जा रहा है. इस दौर में किसी भी पद पर किसकी नियुक्ति होनी है इसका आंकलन बहुत मुश्किल है. इस तरह की इन्फॉर्मेशन केवल अमित शाह और नरेंद्र मोदी को ही रहती है. और सबसे बड़ी बात यह है कि पार्टी इनके नेतृत्व में चौंकाने वाले नामों का ऐलान करती रही है. हरियाणा में मनोहर लाल खट्ट्रर, बिहार में सीएम नीतीश कुमार के साथ डिप्टी सीएम के लिए तारा किशोर प्रसाद और उमा देवी का नाम लिया गया था. ये लोग भी छुपा रुस्तम ही साबित हुए थे. झारखंड में इसी तरह रघुबर प्रसाद का नाम भी सामने आया था.
इस फैसले के साथ अटल-आडवाणी युग की समाप्ति
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नेपथ्य में भेजने की तैयारी की साथ बीजेपी में अटल-आडवाणी युग की पूर्णतः समाप्ति भी हो गई है. शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के युग के बीजेपी में प्रतिनिधि थे. रमन सिंह तो पहले ही भूतपूर्व हो चुके थे पर एक उम्मीद थी कि हो सकता है कि छत्तीसगढ़ में फिर से उनकी ताजपोशी हो जाए.इसी तरह राजस्थान की पूर्व सीएम रह चुकीं वसुंधरा राजे भी भूतपूर्व होने के साथ पार्टी की मेन स्ट्रीम से बाहर ही थीं. क्या अब शिवराज को भी नेपथ्य में जाना है? इस सवाल पर राजनीतिक विश्वेषक दिनेश गुप्ता कहते हैं कि बहुत कम उम्मीद है कि शिवराज को केंद्र में कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय देकर सीएम पद की भरपाई की जाए. और यह बीजेपी की अंदरूनी राजनीति के लिए भी ठीक भी नहीं होगा कि शिवराज के कद का आदमी मोदी मंत्रिमंडल में पहुंचकर एक नया पावर सेंटर बन जाए .