सफेद क्यों होते थे गाड़ियों के टायर, कब किया गया इन्हें काला
नई दिल्ली. आज सड़क पर चलती गाड़ियों में अमूमन काले टायर ही दिखाई देते हैं. संभव है कि 10 में से 10 गाड़ियों के टायर काले ही दिखेंगे. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. एक समय था जब टायर काले नहीं सफेद हुआ करते थे.
यह शुरुआती कारों के समय की बात है. ऐसा क्यों था और आखिर इनका रंग बदला क्यों गया. यह एक दिलचस्प तथ्य है.
पहले पहिए लकड़ी के बनाए जाते थे. लकड़ी के पहिए पर लोहे की परत चढ़ाई जाती थी. 19वीं शताब्दी के मध्य में रबर को खोजा गया. इसके बाद लोहे की जगह रबड़ को ही टायरों पर लगाया जाने लगा. रबड़ से टायर बनाए जाने लगे और फिर धीरे-धीरे इन्हीं में बदलाव के साथ इन्हें बेहतर किया गया. 1845 में पहली बार हवा भरे जा सकने वाले टायर आए लेकिन इनका लोगों ने इस्तेमाल नहीं किया और यह खत्म हो गए. 1888 में एक बार फिर इन्हें बाजार में लाया गया और इस बार लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया. ऐसा क्यों हुआ यह एक अलग कहानी है.
टायर का रंग
टायरों का रंग पहले सफेद होता था. रबड़ सफेद हल्के पीले-सफेद रंग की होती थी इसलिए टायर भी उसी रंग के बनते थे. इसके साथ ही रबड़ को मजबूत बनाने और उसकी पकड़ को बढ़ाने के लिए इसमें जिंक ऑक्साइड मिलाया जाता था. इससे टायर पूरी तरह सफेद हो जाता था. लेकिन इस टायर के साथ एक दिक्कत थी, यह जल्दी खराब हो जाते थे. यह ड्यूरेबल नहीं थे. 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इसका इलाज ढूंढा गया.
वाइट वॉल टायर्स.
ब्लैक टायर्स
18वीं सदी के अंत में कंपनियों को इस बात का एहसास होने लगा कि सफेद टायर का कोई विकल्प ढूंढना होगा क्योंकि यह बहुत जल्दी घिसकर खत्म हो जाते हैं. 19वीं सदी के अंत तक इसका एक इलाज खोजा गया. कार निर्माता KIA की वेबसाइट के अनुसार, खाली रबड़ी की जगह रबड़ को सूट (Soot) के साथ मिक्स किया जाने लगा. इसमें अधिकांश मात्रा कार्बन की थी इसलिए टायर काले होने लगे. इसके बाद सूट की जगह कार्बन ब्लैक को मिक्स में डाला जाने लगा. इससे टायरों का रंग तो काला रहा ही, साथ में टायरों की घिसावट के प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ गई. ऐसा माना जाता है कि पहले जहां केवल रबड़ वाले टायर 5000 किलोमीटर चलते थे. नए टायर 15000 किलोमीटर से ऊपर चलने लगे.
गौरतलब है कि 1920-30 के दशक में कंपनियों ने खुद को थोड़ा अलग दिखाने के लिए वाइट वॉल टायर बनाए. इसमें जमीन से संपर्क वाला हिस्सा काला होता था जबकि साइड से दिखने वाला हिस्सा सफेद रहता था. हालांकि, टायर का यह फैशन बहुत लंबा नहीं चल सका.