एकलव्य शाहपुर में हुई हल्की क्वालिटी के गद्दों की खरीदी एमपीएसआरएस के निर्देशों को भी बताया ठेंगा
एकलव्य शाहपुर में हुई हल्की क्वालिटी के गद्दों की खरीदी
एमपीएसआरएस के निर्देशों को भी बताया ठेंगा
बैतूल। शाहपुर स्थित एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय के फर्जी वाड़े की फेहरिस्त लगातार लम्बी होती जा रही है। संचालन के लिए खरीदी जाने वाली प्रत्येक सामग्री में लाखों का फर्जी वाड़ा होने की संभावना के बावजूद मामले की जांच के लिए जांच कमेटी तक गठित नहीं किया जाना कई सवाल खड़े कर रहा है। आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष मुन्ना लाल वाड़ीवा ने इसकी शिकायत सी एम हेल्प लाइन समेत जिला प्रशासन और जनसुनवाई में कर रखी है लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही के आदेश नहीं होने के बाद उन्होंने इसकी लिखित शिकायत मय दस्तावेजों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से भी की है। मुन्ना लाल का कहना है कि एकलव्य प्रबन्धन ने आवासीय परिसर के लिए खरीदे गए गद्दों में भी भारी हेरफेर किया है। खरीदी में मध्य प्रदेश स्पेशल एन्ड रेसिडेंशियल एकेडमिक सोसायटी के निर्देशों को भी ताक पर रख दिया गया है।
निर्धारित मापदण्ड को दरकिनार कर खरीदे गए गद्दे
शिकायत कर्ता के मुताबिक गद्दों की खरीदी तीन अलग अलग फर्मों से अलग अलग दरों पर किया जाना समझ से परे है।एमपीएसआरएस के निर्देशों के मुताबिक जिन गद्दों की खरीदी की जानी थी उसका साइज 127एमएम/12एमएम निर्धारित किया गया था। जिसका बाजार मूल्य लगभग 4500 रुपये प्रति गद्दा है। लेकिन प्रबन्धन ने ये इस साइज का गद्दा ना खरीदते हुए हल्की क्वालिटी के गद्दों की खरीदी कर डाली ध्यान देने वाली बात ये है कि तीनों फर्मो को अलग अलग दरों पर राशि का भुगतान किया गया है। सवाल ये है कि प्रबन्धन ने जिस भी क्वालिटी के गद्दों की खरीदी की है उसके अलग अलग रेट आखिर कैसे हो सकते हैं।
50 गद्दों की खरीदी पर 1 लाख ज्यादा किया भुगतान
शिकायत कर्ता मुन्ना लाल वाड़ीवा का कहना है कि एकलव्य आवासीय परिसर में कुल 50 गद्दों की खरीदी की गई थी। तीन अलग अलग फर्मों से यह खरीदी की गई है। एक फर्म का रेट प्रति गद्दा 6 हजार 148 रुपये है, दूसरी फर्म का 5 हजार 207 तथा तीसरी फर्म से यही गद्दा 6 हजार 149 रुपये में खरीदा गया है। कुल 50 गद्दों की खरीदी कर इन फर्मों को 5 लाख 15 हजार 715 रुपये का भुगतान बाउचर नम्बर 54,61,56 के आधार पर किया गया है। सवाल ये है कि यही गड्ढे बाजार मूल्य के हिसाब से खरीदे जाते तो शासन को 1 लाख 10 हजार 715 रुपये की बचत हो सकती थी। लेकिन यह अतिरिक्त रकम ज्यादा कैसे खर्च कर दी गयी यह जांच का विषय है।
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