चीन का वो महान नेता, जो ना सुबह ब्रश करता और ना ही नहाता, इसके लिए गढ़े तर्क
दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें हाइजीन से कोई मतलब नहीं है. ऐसे ही लोगों में से एक थे चीन के शासक माओ जेडोंग (Mao Zedong), जिन्हें माओत्सेतुंग के नाम से भी जाना जाता है. माओ के फिजिशियन और बेहद करीबी रहे Li Zhisui ने अपनी किताब The Private Life of Chairman Mao में माओ के अजीबोगरीब रहनसहन का विस्तार से जिक्र किया है.
माओ को डेंटल हाइजीन से कोई मतलब नहीं था. वे लगातार पहले अपने डॉक्टरों और फिर अपने कार्यकर्ताओं के बीच भी ये स्वीकारा करते थे.
चाय से करते थे दांत साफ
उनका कहना था कि वो रोज सुबह उठकर गर्म चाय से दांत साफ करते हैं. डॉक्टर ली ने अपनी किताब में लिखा है कि चाय से दांत साफ करने का उनका तरीका खास बढ़िया नहीं था. इसका रिजल्ट माओ के दांतों पर दिखा. उन पर काली-हरी गंदगी जमी हुई थी और जल्दी ही उनके मसूड़े सड़ने लगे और उनमें मवाद बनने लगा. हालांकि तब भी माओ ने डॉक्टरों की सलाह मानने से इनकार कर दिया. उनका तर्क था कि शेर कभी मुंह नहीं धोता इसलिए उसके दांत इतने नुकीले होते हैं.
नहाने से था परहेज
चीन के इस नेता को नहाने से भी सख्त बैर था. वैसे ये बात और है कि तैराकी माओ का शौक था और वे ठीक ठाक तैराकी कर लेते थे.. साल 1966 में वे 70 के हो चुके थे, लेकिन खुद को उतना ही जवान और चुस्त दिखाने के लिए उन्होंने Cross-Yangtze Swimming Competition आयोजित किया. Yangtze नदी पर आयोजित इस प्रतियोगिता में देश भर के 5000 तैराक शामिल हुए. प्रतियोगिता शुरू हुई और माओ जीत गए. दावा किया गया कि 70 साल के नेता ने 15 किलोमीटर की दूरी महज 65 मिनट में तय की. यानी हर एक सेकंड में 3.8 मीटर. दुनिया के महान तैराक भी इतनी तेज तैराकी नहीं कर सके हैं. इसके बाद नेता के नदी पार करने का कोई वीडियो नहीं आया, लेकिन चीन के अखबार दावा करते रहे कि उनके पास सुपर-ह्यूमन ताकत है, जिससे वे 70 की उम्र में ही किसी जवान से आगे हैं.
नहीं करते थे टॉयलेट का इस्तेमाल
माना जाता है कि खेतों और जंगलों के बीच पले बढ़े माओ को टॉयलेट के इस्तेमाल से भी परहेज था. वे इसके लिए जंगलों में जाया करते और साथ में बॉडीगार्ड होते. माओ के बारे में एक दिलचस्प किस्सा है कि जब साल 1949 में वे मास्को (रूस) पहुंचे तो उन्हें यकीन था कि उनका खूब स्वागत होगा. इसके उलट माओ के पहुंचते ही उन्हें होटल ले जाकर छोड़ दिया गया और बार-बार खाना भेजा गया. गुस्से में माओ चीखने लगे कि वे यहां खाने और वॉशरूम जाने के लिए नहीं आए हैं.
खेतों और जंगलों के बीच पले बढ़े माओ को टॉयलेट के इस्तेमाल से भी परहेज था.
आखिर क्या चाहते थे स्टालिन
इधर स्टालिन को इंतजार था कि कब माओ टॉयलेट जाए और कब उनके मॉडिफाइट टॉयलेट से उनका मल-मूत्र इकट्ठा कर उसकी जांच हो सके. तब तत्कालीन सोवियत संघ के लीडर स्टालिन का मानना था कि माओ के अपशिष्ट में अगर पोटैशियम की भरपूर मात्रा नहीं मिले तो इसका मतलब है कि वे घबराए हुए हैं. तानाशाह स्टालिन को घबराए हुए नेता से किसी बात या करार का शौक नहीं था. और हुआ भी यही. काफी वक्त बाद माओ से मिलने के बाद भी स्टालिन ने उनके साथ किसी खास मुद्दे पर बात से इनकार कर दिया.
मिजाज से थे रंगीन
ऐसी अजीबोगरीब बातों के अलावा माओ को उनकी रंगीनमिजाजी के लिए भी याद किया जाता है. नॉर्थ कोरिया के तानाशाहों के हरम की तर्ज पर माओ भी जहां जाते, अपने साथ युवा लड़कियों का डांस ग्रुप ले जाते. इसे Cultural Work Troupe कहा जाता था, जिसका काम था माओ के साथ नृत्य करना. हालांकि नृत्य खत्म होते-होते माओ ग्रुप में से किसी एक को चुनकर अपने साथ अपने बेडरूम में ले जाया करते. उम्र बढ़ने के साथ माओ में औरतें के साथ की इच्छा और बढ़ती चली गई और वे उनसे घिरे रहने लगे. चीनी कहावत के अनुसार वे मानते थे कि ऐसा करने पर उनका पौरुष लौट आएगा. माओ का डॉक्टर उन्हें चेताता भी था, लेकिन उन्होंने ये जारी रखा. माओ के साथ रह चुकी बहुत सी युवतियों को यौन रोग हो गया जो कि उन्हीं से ट्रांसफर हुआ था. लेकिन युवतियों के लिए ये badge of honor था और कभी किसी ने खुलकर विरोध नहीं किया. वैसे विरोध न करने की एक साफ और असल वजह ये भी हो सकती है कि माओ उस दौर में चीन के सबसे शक्तिशाली शख्स थे, जिनके बारे में कुछ भी कहना जान से हाथ धोना था.
माओ ने चलाई एक मुहिम
इसका अंदाजा माओ के Four Pests Campaign से लगाया जा सकता है. साल 1958 में माओ ने एक मुहिम शुरू की. इसके तहत खेती को नुकसान पहुंचाने वाले चार जीव-जंतुओं को मारने का फैसला हुआ- चूहे, जिनसे प्लेग फैलता है, मच्छर क्योंकि वे मलेरिया फैलाते हैं और मक्खियां जो कि हैजा फैलाती हैं. इनके साथ चौथी थी गौरैया. माओ का मानना था कि ये चिड़िया फसल के दाने खा जाती है जिससे काफी नुकसान हो रहा है. Four Pests Campaign के बाद चूहे, मच्छर और मक्खियों का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन पूरे चीन से गौरैया लगभग खत्म हो गई.
2.5 करोड़ लोग मारे गए
जिस गौरैया को किसानों का दुश्मन और अनाज खाने वाला कहकर मार दिया गया था, वो असल में टिड्डियों को खाकर फसलों की रक्षा करती थीं. 1960 में फसल बहुत कम आई क्योंकि सारे धान पर टिड्डियां लग चुकी थीं. गौरैया न होने के कारण टिड्डियों और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले दूसरे कीड़ों की तादाद तेजी से बढ़ चुकी थी. पैदावार लगातार घटती गई और यहां तक कि इस वजह से चीन में भयंकर अकाल पड़ा. माना जाता है कि इस दौरान 2.5 करोड़ से भी ज्यादा चीनी आबादी मारी गई. इसे Great Chinese Famine के नाम से जाना जाता है. आज भी इस पर चीन में बात वर्जित है. यहां तक कि इसे रिपोर्ट करने वाले पत्रकार Yang Jisheng की किताब Tombstone पर चीन में बैन लगा दिया गया.