धन्ना सेठ के कब्जे में सरकारी भूमि, राजस्व विभाग की कार्रवाई से खुल सकती है भूमिहीनों की किस्मत
By,वामन पोटे
धन्ना सेठ के कब्जे में सरकारी भूमि, राजस्व विभाग की कार्रवाई से खुल सकती है भूमिहीनों की किस्मत
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खसरा 708 पर प्रशासन की कार्रवाई से भूमिहीनों को मिलेगा नया आशियाना
पात्र परिवारों को बसावट के लिए मिल सकता है 80 वर्ग मीटर तक भूखंड
बैतूल। घोड़ाडोंगरी नगर पंचायत के वार्ड 3 में स्थित शासकीय भूमि खसरा नंबर 708 पर चल रहे विवाद और शिकायतों के बीच अब भूमिहीनों के लिए एक नई उम्मीद जागी है। जानकारी के अनुसार, इस खसरे में शेष बचा कुल रकबा 18,900 वर्ग फीट है, जो कि लंबे समय से विवाद का विषय बना हुआ है। कहा जा रहा है कि इस भूमि पर कब्जा जमाने वाला व्यक्ति अब सोने-चांदी का बड़ा व्यापारी बन चुका है, जिसके चलते इस भूमि को प्रशासन के कब्जे में लाना बेहद कठिन हो गया है।
सूत्रों के अनुसार, पूर्व के अधिकारियों ने राजस्व के नियमों में छूट देते हुए इस भूमि का आवंटन किया था, जो अब सवालों के घेरे में है। राजस्व विभाग जो पहले आबादी के पट्टों को लेकर सवाल खड़ा करता था, वह आज खसरा नंबर 708 के मामले में बोलने से पहले सोचने को मजबूर हो गया है। अगर यह भूमि वास्तव में आबादी की है, तो प्रशासन को इसे भूमिहीन पात्र परिवारों के लिए आवंटित करना चाहिए।
खसरा नंबर 708 की भूमि अब भूमिहीन परिवारों के लिए आशा की किरण बन गई है। इस भूमि पर 80 वर्ग मीटर तक का भूखंड बसावट के लिए पात्र परिवारों को मिल सकता है, जिससे उन्हें अपना आशियाना बनाने का मौका मिल सकता है। नगर परिषद घोड़ाडोंगरी बनने के बाद से ही ऐसे भूमिहीन परिवारों को भूमि के अभाव में पट्टा नहीं मिल पा रहा था, लेकिन अब इस खसरे से यह कमी पूरी हो सकती है।
इस भूमि पर अवैध निर्माण की शिकायत भी प्राप्त हुई थी, जिसके चलते प्रशासन ने तीन नोटिस जारी किए हैं। मुख्य नगर पालिका अधिकारी कारू सिंह उइके ने बताया कि तहसीलदार और एसडीएम साहब के मार्गदर्शन में इस भूमि पर उचित कार्रवाई की जाएगी। यदि भूमिहीनों के आवेदन प्राप्त होते हैं, तो उन्हीं के मार्गदर्शन के बाद ही पट्टा दिया जा सकेगा।
तहसीलदार महिमा मिश्रा ने बताया कि घोड़ाडोंगरी तहसील के 2008 तक के रिकॉर्ड की जांच की गई है और इस भूमि को आबादी मद में शामिल पाया गया है। बैतूल रिकॉर्ड रूम में पटवारी से यह भी जांच करवाई जा रही है कि यह भूमि कब और किस आदेश के तहत आबादी मद में दर्ज की गई। इसके बाद ही पट्टे के मुद्दे पर कुछ कहा जा सकेगा।
— कई सवाल अब भी अनुत्तरित–
इस भूमि के संबंध में कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। 1968-1969 के अधिकार अभिलेख में घास की भूमि दर्ज होने के बाद, यह आबादी मद में कब और किसके आदेश से शामिल हुई? क्या इसके रिकॉर्ड में जानबूझकर छेड़छाड़ की गई थी? इसके अलावा, विवादित स्थल के पास 30 फीट का रोड 10 फीट में कैसे बदल गया, और बाकी 20 फीट के कब्जे की अब तक जांच क्यों नहीं हुई?
इन सवालों के उत्तर मिलने के बाद ही खसरा 708 पर भूमिहीनों को पट्टे देने की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है। अगर प्रशासन इस पर उचित कार्रवाई करता है, तो यह भूमि भूमिहीनों के लिए अनोखी आस बन सकती है।