मशरूम की उन्नत खेती कर किसानों को होगा दोगुना लाभ सरकार दे रही अनुदान
मार्च २०२३
मशरूम की खेती: जिले में किसान पांरपरिक खेती के साथ-साथ मशरूम की खेती करके दोगुना से ज्यादा का लाभ कमा रहें हैं. वैसे तो मशरूम काफी मशहूर है वैसे हर मौसम में मशरूम की खेती होती है, लेकिन जाड़े के मौसम में मशरूम का उत्पादन भी ज्यादा होता है वैसे लोग इसे खाने में पसंद भी करते हैं. बाराबंकी जिले में अगर बात करें यहां के हैदरगढ़, बनीकोडर, दरियाबाद, सिद्धौर, हरख, ब्लॉक में मशरूम की काफी खेती होने लगी है। मशरूम उत्पादन करने वाले किसानों को कृषि विभाग की ओर से पुरस्कार भी दिया गया है. बाराबंकी के किसानों का कहना है कि इस खेती में केवल एक लाख रुपए की लागत लगती है लेकिन पांच से छह महीने में करीब तीन से साढ़े तीन लाख रुपए कमाए जा सकते हैं. किसानों को मशरूम की खेती से जोड़ने के सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है।
बाराबंकी जिले के सैदनपुर गांव में मशरूम की खेती करने वाले ऐसे ही एक किसान का नाम राजेश है राजेश ऐसे किसान हैं, जिन्होंने एक समय पर आथिर्क हालत अच्छी न होने के चलते केवल 20 हजार की लागत लगाकर मशरूम की खेती की थी. लेकिन राजेश इस समय करीब पांच से छह लाख की लागत लगाकर मशरूम की खेती कर रहे हैं.और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।उनका कहना है कि मशरूम की खेती करके किसान केवल एक लाख की लागत लगाकर चार से पांच महीने में करीब तीन से साढ़े 3 लाख रुपए कमा सकते हैं.
मशरूम 80 से लेकर 150 रुपए प्रति किलो बिकती है
राजेश का कहना है कि मशरूम की खेती में गेहूं के भूसे की खपत ज्यादा होती है. एक बंगले के अंदर मशरूम बोने के लिए लगभग 50 क्विंटल भूसे में जरूरत पड़ती है. भूसे में रासायनिक और ऑर्गेनिक खाद मिलाकर उसे करीब एक महीने तक सड़ाया जाता है. उसके बाद इसमें मशरूम के बीज बोए जाते हैं. राजेश के मुताबिक वह मशरूम के बीज दिल्ली से लेकर आते हैं. मशरूम बोने से करीब एक महीने के बाद ही वह टूटने लगती है और प्रति दिन एक क्विंटल तक मशरूम निकलने का औसत है. यह मशरूम 80 रुपए प्रति किलो से लेकर 150 रुपए प्रति किलो तक बिक जाती है. इसकी खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।